________________
णमोकार मन्त्र का माहात्म्य एवं प्रभाव 8 1393
अर्थात-यह पंच नमस्कार मन्त्र सभी प्रकार के पापों को नष्ट करता है। अधमतम व्यक्ति भी इस मन्त्र के स्मरण मात्र से पवित्र हो जाता है । यह मन्त्र दधि, दूर्वा, अक्षत, चन्दन, नारियल, पूर्णकलश, स्वस्तिक, दर्पण, भद्रासन, वर्धमान, मस्त्ययुगल, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त
आदि मंगल वस्तुओं में सर्वोत्तम है। इसके स्मरण और जप से अनेक सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
स्पष्ट है कि इस परम मंगलमय महामन्त्र में अद्भुत लोकोत्तर शक्ति है। यह विद्युत तरंग की भांति भक्तों के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक संकटों को तुरन्त नष्ट करता है और अपार विश्वास
और आत्मबल का अविरल संचार करता है। वास्तव में इस महामन्त्र के स्मरण, उच्चारण या जपं से भक्त की अपनी अपराजेय चैतन्य शक्ति जाग जाती है। यह कुंडलिनी (तेजस् शरीर) के माध्यम से हमारी आत्मा के अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान और अनन्त वीर्य को शाणित एवं सक्रिय करता है। अर्थात् आत्म साक्षात्कार इससे होता है।
पंच परमेष्ठियों की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए उनसे जनकल्याण की प्रार्थना इस प्रसिद्ध शार्दल विक्रीडित छन्द में की गयी है
"अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धि स्थिताः। आचार्याजिन शासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः॥ श्रीसिद्धान्त सुपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः। पंचते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तुनो मङ्गलम् ॥' जिनशासन में अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, इन पांचों की परमेष्ठी संज्ञा है। ये परम पद में स्थित हैं अतः परमेष्ठी कहे जाते हैं। चार घातिया कर्मों का क्षय कर चुकने वाले, इन्द्रादि द्वारा पूज्य, केवलज्ञानी, शरीरधारी होकर भी जो विदेहावस्था में रहते हैं, तीर्थंकर पद जिनके उदय में है, ऐसे अरिहन्त परमेष्ठी हमारा सदा मंगल करें। अप्ट कर्मों के नाशक, अशरीरी, परम निर्विकार सिद्ध परमेष्ठी हमारा सदा मंगल करें। जिनशासन की सर्वतोमुखी उन्नति जिनके द्वारा होती है और जो स्वयं शास्त्रीय मर्यादा के अनुसार चरित्र पालन करते हैं ऐसे आचार्य परमेष्ठी तथा समस्त शास्त्रों के ज्ञाता