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2 1448 महामन्त्र णमोकार : एक वैज्ञानिक अन्वेषण
भीतर और बाहर के लोग बाहर ही रहने लगे। सम्पर्क टूट गया। वहां से निकलने का किसी का साहस ही नहीं होता था।
उसी समय श्रमण भगवान महावीर बिहार करते हुए वहां पधारे। राजा श्रेणिक भगवान के दर्शन करना चाहते थे, पर विवश थे। सुदर्शन सेठ ने प्राण हथेली पर रखकर भगवान के दर्शन करने का निश्चय किया। बस राजा से अनुमति ली और चल पड़े। नगर के बाहर पैर रखते ही अर्जुन से उनका सामना हुआ। अर्जुन ने अपना कठोर मुद्गल सुदर्शन को मारने के लिए उठाया, पर आश्चर्य की बात यह हुई कि अर्जुन हाथ उठाए हए कीलित होकर रह गया। यक्ष-शक्ति भी कीलित हो गयी। क्यों? सेठ सुदर्शन ने परम शान्तचित्त से महामन्त्र णमोकार का स्तवन आरम्भ कर दिया और ध्यानस्थ खड़ रहे। कुछ देर तक यही स्थिति रही। मन्त्र की संरक्षिणी देवियां सेठ की रक्षा के लिए आ गयी थीं। बस नमस्कार करके यक्ष भाग खड़ा हुआ और अर्जुन असहाय हो गया। उसे अपनी भख-प्यास और असहायावस्था । का बोध हुआ। उसने सेठ सुदर्शन से पूर्ण विनीत भाव से क्षमा मांगी। भगवान की शरण में जाकर मुनिव्रत धारण कर लिया। नगरवासियों को उसे देखते ही बहुत क्रोध आया और शब्दों के द्वारा तथा पत्थरों के द्वारा मुनि-अर्जन का तिरस्कार हुआ। अर्जुन ने यह बड़े धैर्य के साथ सहा. वह अविचल रहा । सुदर्शन सेट से उसने महामन्त्र को गुरुमन्त्र के रूप में ग्रहण कर लिया था। धीरे-धीरे लोगों की धारणा वदली। अर्जुन ने अन्ततः संल्लेखना धारण की और आत्मा की सर्वोच्च अवस्था प्राप्त की।
निष्कर्ष-यह कथा स्पष्ट करती है कि महामन्त्र के प्रभाव से एक भक्त के प्राणों की रक्षा होती है और दूसरी ओर एक हत्यारा अपनी राक्षसोवृत्ति को त्यागकर आत्मकल्याण भी करता है। विश्वासः फलदायकः । -सही आदमी का सही विश्वास सब कुछ कर सकता है।
"नर हो न निराश करो मन को।' एकपतित एवं अन्यन्त अज्ञानी व्यक्ति भी यदि महामन्त्र से जीवन की सर्वोच्चता प्राप्त कर सकता है तो विवेकशील श्रद्धावान् वया नहीं पा सकता?