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21248 महामन्त्र नमोकार: एक वैज्ञानिक अन्वेषन . बनाने के साथ अन्यों के लिए प्रेरणा, आदर्श और अनुकरण का विषय बनता है। आचार्य का निर्णय चतुर्विध संघ करता है और तदनुसार, उन्हें अपने नेतृत्व में साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका-चारों के ज्ञानचरित्र के उत्तरोत्तर विकास में सहायता करनी पड़ती है। इस प्रकार आचार्य परमेष्ठी वीतराग भगवान के गुरुकुल के संचालक होते हैं और चारों तीर्थों के नेता होते हैं। गमो उवज्झाया
उपाध्येय परमेष्ठियों को नमस्कार हो। आचार्य परमेष्ठी आचार (चारित्र्य) पालन और अनुशासन पक्षों पर प्रमुख रूप से ध्यान देते हैं। इन्हीं पक्षों से सम्बन्धित विषयों का अध्यापन (उपदेश) भी आवश्यकतानुसार देते हैं। उपाध्याय परमेष्ठी में आचार्य के पूर्वोक्त प्रायः सभी गुण होते हैं। इनका प्रमुख कार्य मुनियों को द्वादशाङ्ग वाणी के सभी पक्षों का विशद एवं तात्विक अध्ययन कराना है। उप अर्थात जिनके समीप बैठकर मुनिगण अध्ययन करते हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं। अथवा ज्ञान की सर्वोच्च उपाधि 'उपाध्याय' से जो विभूषित हो वे उपाध्याय कहलाते हैं। "जो मुनि परमागम का अभ्यास करके मोक्ष मार्ग में स्थित हैं तथा मोक्ष के इच्छुक मुनियों को उपदेश देते हैं, उन मुनीश्वरों को उपाध्याय परमेष्ठी कहते हैं। उपाध्याय ही जैनागम के ज्ञाता होने के कारण मुनिसंघ में पठन-पाठन के अधिकारी होते हैं 'ग्यारह अंग और चौदह पूर्व के पाठी, ज्ञान, ध्यान में लीन, परम निर्ग्रन्थ श्री उपाध्याय परमेष्ठी को हमारा नमस्कार हो। सम्यग्ज्ञान की समस्त उच्चता, गाम्भीर्य और विस्तार के पूर्ण ज्ञाता और विवेचनकर्ता उपाध्याय होते हैं। उपाध्याय परमेष्ठी श्रुतज्ञान के अधिष्ठाता होने के साथ-साथ व्याख्या और विवेचन की नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से भी समलंकृत होते हैं। उनका समस्त जीवन ज्ञानार्जन एवं ज्ञानदानार्थ समर्पित रहता है। उनमें किसी प्रकार का स्वार्थ, हीनता ग्रन्थि अथवा व्यापार बुद्धि का सर्वथा अभाव रहता है। वे बाहर और भीतर से एक से होते हैं। उन्हें सांसारिकता से कोई
1. 'सर्वधर्म सार महामन्त्र नवकार'-१० 53, कांति ऋषीजी 2. 'मंगलमन्त्र णमोफार : एक चिन्तन'-पृ० 48, डॉ० नेमिचन्द्र जैन