Book Title: Mahabharat Samhita Part 03
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 751
________________ 12. 287. 32] शान्तिपर्व [12. 288.7 तथाद्या प्रकृतिर्योगादभिसंस्यूयते सदा // 32 शुभाशुभेनात्मकृतेन कर्मणा // 44 स्नेहपाशैर्बहुविधैरासक्तमनसो नराः / भीष्म उवाच / प्रकृतिस्था विषीदन्ति जले सैकतवेश्मवत् / / 33 इत्युक्तो जनको राजन्यथातथ्यं मनीषिणा। शरीरगृहसंस्थस्य शौचतीर्थस्य देहिनः / श्रुत्वा धर्मविदां श्रेष्ठः परां मुदमवाप ह // 45 बुद्धिमार्गप्रयातस्य सुखं त्विह परत्र च // 34 इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि विस्तराः केशसंयुक्ताः संक्षेपास्तु सुखावहाः। सप्ताशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः // 287 / / परार्थ विस्तराः सर्वे त्यागमात्महितं विदुः // 35 288 संकल्पजो मित्रवर्गो ज्ञातयः कारणात्मकाः / युधिष्ठिर उवाच / भार्या दासाश्च पुत्राश्च स्वमर्थमनुयुञ्जते // 36 सत्यं क्षमा दमं प्रज्ञा प्रशंसन्ति पितामह / न माता न पिता किंचित्कस्यचित्प्रतिपद्यते / विद्वांसो मनुजा लोके कथमेतन्मतं तव // 1 दानपथ्योदनो जन्तुः स्वकर्मफलमभुते // 30 भीष्म उवाच / माता पुत्रः पिता भ्राता भार्या मित्रजनस्तथा / अत्र ते वर्तयिष्येऽहमितिहासं पुरातनम् / अष्टापदपदस्थाने त्वक्षमुद्रेव न्यस्यते // 38 साध्यानामिह संवाद हंसस्य च युधिष्ठिर // 2 सर्वाणि कर्माणि पुरा कृतानि हंसो भूत्वाथ सौवर्णस्त्वजो नित्यः प्रजापतिः / शुभाशुभान्यात्मनो यान्ति जन्तोः / स वै पर्येति लोकांनीनथ साध्यानुपागमत् // 3 उपस्थितं कर्मफलं विदित्वा बुद्धिं तथा चोदयतेऽन्तरात्मा / / 39 साध्या ऊचुः। व्यवसायं समाश्रित्य सहायान्योऽधिगच्छति / शकुने वयं स्म देवा वै साध्यास्त्वामनुयुज्महे / न तस्य कश्चिदारम्भः कदाचिदवसीदति // 40 पृच्छामस्त्वां मोक्षधर्म भवांश्च किल मोक्षवित् // 4 अद्वैधमनसं युक्तं शूरं धीरं विपश्चितम् / श्रुतोऽसि नः पण्डितो धीरवादी न श्रीः संत्यजते नित्यमादित्यमिव रश्मयः // 41 ___ साधुशब्दः पतते ते पतत्रिन् / आस्तिक्यव्यवसायाभ्यामुपायाद्विस्मयाद्धिया। किं मन्यसे श्रेष्ठतमं द्विज त्वं यमारभत्यनिन्द्यात्मा न सोऽर्थः परिसीदति // 42 ___ कस्मिन्मनस्ते रमते महात्मन् // 5 सर्वः स्वानि शुभाशुभानि नियतं कर्माणि जन्तुः स्वयं तन्नः कार्य पक्षिवर प्रशाधि गर्भात्संप्रतिपद्यते तदुभयं यत्तेन पूर्वं कृतम् / / ___ यत्कार्याणां मन्यसे श्रेष्ठमेकम् / मृत्युश्चापरिहारवान्समगतिः कालेन विच्छेदिता यत्कृत्वा वै पुरुषः सर्वबन्धैदारोश्चर्णमिवाश्मसारविहितं कर्मान्तिक प्रापयेत् // विमुच्यते विहगेन्द्रेह शीघ्रम् // 6 स्वरूपतामात्मकृतं च विस्तरं ___हंस उवाच / कुलान्वयं द्रव्यसमृद्धिसंचयम् / इदं कार्यममृताशाः शृणोमि नरो हि सर्वो लभते यथाकृतं ___ तपो दमः सत्यमात्माभिगुप्तिः / - 2379 -

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