Book Title: Mahabharat Samhita Part 03
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
________________ 12. 304. 18 ] महाभारते [ 12. 305. 18 लक्षणं तु प्रसादस्य यथा तृप्तः सुखं स्वपेत् // 18 - बाहुभ्यामिन्द्रमित्याहुरुरसा रुद्रमेव च // 4 निवाते तु यथा दीपो ज्वलेत्स्नेहसमन्वितः। ग्रीवायास्तमृषिश्रेष्ठं नरमाप्नोत्यनुत्तमम् / निश्चलोर्ध्वशिखस्तद्वद्युक्तमाहुर्मनीषिणः // 19 विश्वेदेवान्मुखेनाथ दिशः श्रोत्रेण चाप्नुयात् // 5 पाषाण इव मेघोत्थैर्यथा विन्दुभिराहतः / घ्राणेन गन्धवहनं नेत्राभ्यां सूर्यमेव च / नालं चालयितुं शक्यस्तथा युक्तस्य लक्षणम् // 20 भ्रूभ्यां चैवाश्विनौ देवौ ललाटेन पितृनथ // 6 शङ्खदुन्दुभिनिर्घोषैर्विविधैर्गीतवादितैः / ब्रह्माणमाप्नोति विभुं मूर्धा देवाग्रजं तथा। क्रियमाणैर्न कम्पेत युक्तस्यैतन्निदर्शनम् // 21 एतान्युत्क्रमणस्थानान्युक्तानि मिथिलेश्वर // . तैलपात्रं यथा पूर्ण कराभ्यां गृह्य पूरुषः / अरिष्टानि तु वक्ष्यामि विहितानि मनीषिभिः / सोपानमारुहेद्धीतस्तय॑मानोऽसिपाणिभिः // 22 संवत्सरवियोगस्य संभवेयुः शरीरिणः // 8 संयतात्मा भयात्तेषां न पात्राद्विन्दुमुत्सृजेत् / योऽरुन्धतीं न पश्येत दृष्टपूर्वां कदाचन / तथैवोत्तरमाणस्य एकाग्रमनसस्तथा // 23 तथैव ध्रुवमित्याहुः पूर्णेन्दुं दीपमेव च / स्थिरत्वादिन्द्रियाणां तु निश्चलत्वात्तथैव च / खण्डाभासं दक्षिणतस्तेऽपि संवत्सरायुषः॥ 9 एवं युक्तस्य तु मुनेर्लक्षणान्युपधारयेत् / / 24 परचक्षुषि चात्मानं ये न पश्यन्ति पार्थिव / स युक्तः पश्यति ब्रह्म यत्तत्परममव्ययम् / आत्मच्छायाकृतीभूतं तेऽपि संवत्सरायुषः॥ 10 महतस्तमसो मध्ये स्थितं ज्वलनसंनिभम् // 25 अतिद्युतिरतिप्रज्ञा अप्रज्ञा चाद्युतिस्तथा / एतेन केवलं याति त्यक्त्वा देहमसाक्षिकम् / / प्रकृतेर्विक्रियापत्तिः षण्मासान्मृत्युलक्षणम् // 11 कालेन महता राजश्रुतिरेषा सनातनी // 26 देवतान्यवजानाति ब्राह्मणैश्च विरुध्यते / एतद्धि योगं योगानां किमन्यद्योगलक्षणम् / कृष्णश्यावच्छविच्छायः षण्मासान्मृत्युलक्षणम् // विज्ञाय तद्धि मन्यन्ते कृतकृत्या मनीषिणः // 27 शीर्णनाभि यथा चक्रं छिद्रं सोमं प्रपश्यति / इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि तथैव च सहस्रांशु सप्तरात्रेण मृत्युभाक् // 13 चतुरधिकत्रिशततमोऽध्यायः // 304 // शवगन्धमुपाघ्राति सुरभिं प्राप्य यो नरः / 305 देवतायतनस्थस्तु पात्रेण स मृत्युभाक् // 14 याज्ञवल्क्य उवाच / कर्णनासावनमनं दन्तदृष्टिविरागिता / तथैवोत्क्रममाणं तु शृणुष्वावहितो नृप / संज्ञालोपो निरूष्मत्वं सद्योमृत्युनिदर्शनम् // 15 पद्भयामुत्क्रममाणस्य वैष्णवं स्थानमुच्यते // 1 / अकस्माच्च वेद्यस्य वाममक्षि नराधिप / जवाभ्यां तु वसून्देवानाप्नुयादिति न श्रुतम् / मूर्धतश्चोत्पतेद्धूमः सद्योमृत्युनिदर्शनम् // 16 जानुभ्यां च महाभागान्देवान्साध्यानवाप्नुयात् // 2 / एतावन्ति त्वरिष्टानि विदित्वा मानवोऽऽत्मवान् / पायुनोत्क्रममाणस्तु मैत्रं स्थानमवाप्नुयात् / निशि चाहनि चात्मानं योजयेत्परमात्मनि // 17 पृथिवीं जघनेनाथ ऊरुभ्यां तु प्रजापतिम् // 3 / प्रतीक्षमाणस्तत्कालं यत्कालं प्रति तद्भवेत् / पार्श्वभ्यां मरुतो देवान्नासाभ्यामिन्दुमेव च। / अथास्य नेष्टं मरणं स्थातुमिच्छेदिमां क्रियाम् // 18 -2406
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