Book Title: Mahabharat Samhita Part 03
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
View full book text ________________ 12. 316. 43] शान्तिपर्व [12. 317. 11 जराशोकसमाविष्टं रोगायतनमातुरम् / परिभ्रमति संसारं चक्रवद्वहुवेदनः // 57 रजस्वलमनित्यं च भूतावासं समुत्सृज // 43 स त्वं निवृत्तबन्धस्तु निवृत्तश्चापि कर्मतः / इदं विश्वं जगत्सर्वमजगञ्चापि यद्भवेत् / सर्ववित्सर्वजित्सिद्धो भव भावविवर्जितः // 58 महाभूतात्मकं सर्व महद्यत्परमाणु यत् // 44 संयमेन नवं बन्धं निवर्त्य तपसो बलात् / इन्द्रियाणि च पश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा। संप्राप्ता बहवः सिद्धिमप्यबाधां सुखोदयाम् // 59 इत्येष सप्तदशको राशिरव्यक्तसंज्ञकः // 45 इति श्रीमहाभारते शान्तिपर्वणि सर्वैरिहेन्द्रियार्थैश्च व्यक्ताव्यक्तैर्हि संहितः / षोडशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः // 31 // पञ्चविंशक इत्येष व्यक्ताव्यक्तमयो गुणः // 46 एतैः सर्वैः समायुक्तः पुमानित्यभिधीयते / . नारद उवाच / त्रिवर्गोऽत्र सुखं दुःखं जीवितं मरणं तथा // 47 अशोकं शोकनाशार्थ शास्त्रं शान्तिकरं शिवम् / य इदं वेद तत्त्वेन स वेद प्रभवाप्ययौ / निशम्य लभते बुद्धिं तां लब्ध्वा सुखमेधते // 1 पाराशर्येह बोद्धव्यं ज्ञानानां यच्च किंचन // 48 / शोकस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च / इन्द्रियैर्गृह्यते यद्यत्तत्तद्वयक्तमिति स्थितिः / दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम् // 2 अव्यक्तमिति विज्ञेयं लिङ्गग्राह्यमतीन्द्रियम् // 49 तस्मादनिष्टनाशार्थमितिहासं निवोध मे / इन्द्रियैर्नियतैदेही धाराभिरिव तर्प्यते / तिष्ठते चेद्वशे बुद्धिर्लभते शोकनाशनम् // 3 लोके विततमात्मानं लोकं चात्मनि पश्यति // 50 अनिष्टसंप्रयोगाश्च विप्रयोगाप्रियस्य च / परावरदृशः शक्तिर्ज्ञानवेलां न पश्यति / मनुष्या मानसैदुःखैयुज्यन्ते अल्पबुद्धयः // 4 पश्यतः सर्वभूतानि सर्वावस्थासु सर्वदा // 51 द्रव्येषु समतीतेषु ये गुणास्तान चिन्तयेत् / ब्रह्मभूतस्य संयोगो नाशुभेनोपपद्यते / ताननाद्रियमाणस्य स्नेहबन्धः प्रमुच्यते // 5 ज्ञानेन विविधान्क्लेशानतिवृत्तस्य मोहजान् / दोषदी भवेत्तत्र यत्र रागः प्रवर्तते / लोके बुद्धिप्रकाशेन लोकमार्गो न रिष्यते // 52 अनिष्टवद्धितं पश्येत्तथा क्षिप्रं विरज्यते // 6 अनादिनिधनं जन्तुमात्मनि स्थितमव्ययम् / / नार्थो न धर्मो न यशो योऽतीतमनुशोचति / अकारममूर्त च भगवानाह तीर्थवित् // 53 अप्यभावेन युज्येत तश्चास्य न निवर्तते // 7 यो जन्तुः स्वकृतैस्तैस्तैः कर्मभिनित्यदुःखितः / गुणैर्भूतानि युज्यन्ते वियुज्यन्ते तथैव च। स दुःखप्रतिघातार्थ हन्ति जन्तूननेकधा // 54 सर्वाणि नैतदेकस्य शोकस्थानं हि विद्यते // 8 ततः कर्म समादत्ते पुनरन्यन्नवं बहु / मृतं वा यदि वा नष्टं योऽतीतमनुशोचति / तप्यतेऽथ पुनस्तेन भुक्त्वापथ्यमिवातुरः // 55 दुःखेन लभते दुःखं द्वावनौँ प्रपद्यते // 9 // अजस्रमेव मोहा” दुःखेषु सुखसंज्ञितः / नाश्रु कुर्वन्ति ये बुद्ध्या दृष्ट्वा लोकेषु संततिम् / बध्यते मध्यते चैव कर्मभिर्मन्थवत्सदा // 56 सम्यक्प्रपश्यतः सर्वं नाश्रुकर्मोपपद्यते // 10 ततो निवृत्तो बन्धात्स्वात्कर्मणामुदयादिह / दुःखोपघाते शारीरे मानसे वाप्युपस्थिते / म. भा. 305 -2433 -
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