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बाद, बादशाह स्वयं फिर थानसिंह को उद्दिश्य कर बोला कि - "हाँ, मैं तेरी | बनियासाई बाजी समझ गया हूं । तू ने खुद अपना मतलब साधने के इरादे से, इन बातों से मुझे अज्ञान रक्खा है । क्यों कि सूरिमहाराज आज तक कभी इधर नहीं आये इस लिये उन की सेवाशुश्रूषा करने का महान लाभ तेरे जैसे गुरु- भक्त को नहीं मिला। मेरे बुलाने से जो सूरिमहाराज का इधर आगमन हों और जिस का लाभ विशेष कर तूझे और तेरे जातिभाईयों को मिले, तो इस से | अधिक सौभाग्य की बात, तुमारे लिये, और क्या हो सकती है ?” बादशाह के | इन वचनों से सारा ही सभा मण्डल खुश खुश हो गया ।
अकबर ने सूरिजी से रास्ता का हाल जानना चाहा परन्तु उस का ठीक उत्तर उन की ओर से न मिलता देख, पास के किसी अधिकारी को पूछा कि "" सूरिमहाराज को लेने के लिये कौन आदमी गये थे ? - जो गये हो उन्हें यहां | बुलाओ ।" अधिकारी ने जवाब दिया कि “हुजूर मौन्दी और कमाल नाम के, आप के खुद दूत गये थे । बुलाने पर वे तुरन्त हाजर हुए। बादशाह ने उनसे सूरिमहाराज की सारी मुसाफिरी का हाल पूछा। उन्हों ने क्रम से, संक्षेप में, वे सब बातें कह सुनाई जो सूरिजी के साथ चलते हुए रास्ते में उन्हों ने अनुभूत की थीं । वे बोले:- “हुजूर । ये महात्मा, आज कोई लगभग छः महिने हुए गंधार - बंदर से पैदल ही चले आ रहे हैं। अपना जितना सामान है सारा आप ही उठा कर चलते हैं । और किसी को नहीं देते । भिक्षा, गॉव में से, घर घर से. मांग लाते हैं और जेसा मिला वैसा खा लेते हैं । अपने निमित्त बनी हुई किसी चीज को छूते तक भी नहीं । सदा नीचे जमीन पर ही सोते हैं । रात को | कोई भी वस्तु मुंह में नहीं डालते । चाहे कोई इन्हें पूजे और चाहे कोई गालियां दे, इन के मन दोनों समान हैं। ना किसे कभी वर देते हैं और नाही कभी शाप । " | इत्यादि बातें सुन कर अकबर के साथ सारा ही दरबार आश्चर्य और आनंद में निमग्न हो गया । अकबर सूरिमहाराज पर मुग्ध हो गया और अनेक प्रकार से उन की प्रशंसा करने लगा ।
* मौन्दी - कमालाविति नामधेयौ निदेशतः शासनहारिणौ वः ।
sais हितामिव मूर्तिमन्तौ लेखौ वलेखाविव कामचारौ ॥
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हीरसौभाग्य काव्य, १३-२०७ ।
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