Book Title: Kruparaskosha
Author(s): Shantichandra Gani, Jinvijay, Shilchandrasuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ 77 । अंत में एक शुभाशा का उल्लेख कर इस वक्तव्य को समाप्त किया जाता है। विक्रम की सतरहवीं शताब्दी भारत के इतिहास में सदा प्रकाशित रहेगी। जैनियों के हीरविजयसूरि, महाराष्ट्रियों में संत तुकाराम और उत्तर के हिन्दियों में भक्त तुलसीदास जैसे धर्मवीर तथा क्षत्रियमुकुटमणि महाराणा प्रतापसिंह। और मुगल सम्राट बादशाह अकबर जैसे कर्मवीर पुरुष, अपने पवित्र धर्म और कर्म से इसी सदी के सौभाग्य को समुन्नत कर गये हैं। जगद्विजयिनी। । भारतजननी से सानुनय-विनय है कि वह एक बार फिर ऐसे तेजोमय आत्माओं को अवतार दे जिस से दिन प्रतिदिन निस्तेज होते जाते हुए हम भारतियों के । धर्म और कर्म पुनः प्रज्ज्वलित हों और ऐहिक तथा पारलौकिक कर्तव्यों में पूर्ववत् फिर हम संसार-समुद्र के मार्गदर्शक दिव्यदीप बनें । शमस्तु । जैन-उपाश्रय, मुनि जिनविजय। बडौदा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96