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कवि बादशाह से कहता है- हे नरेश ! आप जगत् के स्वामी और गुरु बन कर (अकबर अपने को जो जगद्गुरु और जगदीश्वर के बिरुद से प्रसिद्ध करता था उस को लक्ष्य कर यह कथन है) जो हिंसादि दोषों का निवारण करते हैं इस से सब प्राणी परस्पर के भय से तो मुक्त हैं परंतु स्वयं आप के भय से- आप की आज्ञा का उल्लंघन होने पर शीघ्र ही मिलने वाले कठोर दण्ड के डर से - वे सदा शंकित रहते हैं; यह आश्चर्य की बात है ।' अर्थात् अकबर की आज्ञा का | भय मृत्यु के भय से भी अधिक कठोर है । ईश्वर तो अपने सभी आदेशों को इस | बादशाह पर रख कर कृतकृत्य हो गया है; और यह अकबर भी साधु पुरुषों की तरह ईश्वर के आदेशों का प्रचार करता हुआ, ईश्वर भक्तों में अग्रपद प्राप्त कर रहा है। इस बादशाह की ही दूसरी प्रतिकृतियों समान शेखूजी ( शेख सलीम ), पहाडी (मुराद) और दानियारा नामक तीनों शाहजादे आयुष्यमान् हों । दीपक, चंद्र और सूर्य इन तीनों तेजस्वी पदार्थों में जैसे सूर्य ही अधिक प्रतापवान् गिना जाता है वैसे इन भाईयों में भी बडे भाई शेखूजी ही बादशाह पद के पाने योग्य हैं ।
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यहां से आगे का कथन कवि अपने विषय में कहता हुआ लिखता हैअत्यंत परिचय के कारण, स्वभाव का ठीक ठीक परिज्ञान हो जाने से, मनुष्यों के स्वामी इस अकबर बादशाह से मैंने दया की याचना की। इस याचना करने में अपेक्षित साहस और बुद्धि-वैभव, इन दोनों के होने में खास कारण मेरे गुरु श्रीसकलचन्द्र वाचकेन्द्र का पवित्र प्रभाव ही है । वर्तमान समय में जिन्होंने भारत वर्ष के साधुओं में अग्रपद पाया है, जिन के नाम का पहले कई दफे श्रवण कर, तथा अभी दर्शन कर, सत्संगति - रसिक बादशाह ने अपने श्रवण | और नेत्र का विवाद शांत कर दिया है; और जो सुकृत्यों के करने - कराने में विशेष सहायता करने वाले हैं; उन श्रीहीरविजय सूरीश्वर को इस नरनाथ ने जो अमारिशासन- जीवों के वध के निषेध का शाही फरमान दिया है उस के पुण्य | का प्रमाण केवल सर्वज्ञ ही जान सकता है और नहीं । मच्छीमारों की जालों से मुक्त होकर जो मत्स्य गण, अपनी प्रिय मछलियों से जा मिला, चिडीमारों के पासों में से छूटकर जो पक्षीसमूह ने अपने बच्चों का चुंबन किया और दुग्ध से जिन के स्तन भरे हुए हैं ऐसी सुन्दर गायें अपने प्रिय बछडों के प्रेम के कारण
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