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पांच पहाड और सम्मेतशिखरजी उर्फ पार्श्वनाथ पहाड जो बंगाल में हैं; उन । सभी पहाडों के नीचे, सभी मंदिरों की कोठियों के पास तथा और सभी भक्ति
करने की जगहों, जो जैनश्वेताम्बर धर्म की हैं, उन की चारों ओर, कोई भी | आदमी किसी जानवर को न मारें।" ये (महात्मा) दूर देश से आये हैं । इन की
अर्ज यथार्थ है । मुसलमान धर्म से भी इन की याचना विरुद्ध नहीं है । क्यों कि महान् पुरुषों का यह नियम होता है कि वे किसी धर्म में अपना दखल नहीं करते। इस लिये हमारी समझ में यह अर्जी दुरस्त मालूम दी। तहकीकात करने । से भी मालूम हुआ कि ये सभी स्थान बहुत अर्से से जैन श्वेताम्बर धर्म ही के हैं।
अतएव इन की यह अर्ज मंजूर की गई है। और "सिद्धाचल, गिरनार, तारंगा, । केशरीया और आबू के पहाड जो गुजरात में हैं, तथा राजगृहि के पांच पहाड
और सम्मेतशिखर ऊर्फ पार्श्वनाथ पहाड जो बंगाल में हैं, तथा और भी। । जैनश्वेताम्बर संप्रदाय के धर्मस्थान जो हमारे ताबे के मुल्कों में हैं वे सभी
जैनश्वेताम्बर संप्रदाय के आचार्य हीरविजयसूरि के स्वाधीन किये जाते हैं। जिस से शांतिपूर्वक ये इन पवित्र स्थानों में अपनी ईश्वरभक्ति किया करें।"
यद्यपि इस समय ये स्थान हीरविजयसूरि को दिये जाते हैं परंतु वास्तव में । हैं ये सब जैनश्वेताम्बर धर्मवालों ही के, और इन्हीं की मालिकी के हैं। । जब तक सूर्य से दिन और चाँद से रात रोशन रहे तब तक यह शाश्वत
फरमान जैनश्वेताम्बर धर्मवालों में प्रकाशित रहें । कोई भी मनुष्य इस फरमान । । में दखल न करें। इन पर्वतों की जगह- नीचे, ऊपर, आसपास, सभी यात्रा के । स्थानों में और पूजा करने की जगहों में कोई, किसी प्रकार की जीवहिंसा न
करें। इस हुक्म पर गौर कर अमल करें। कोई भी इस से उलटा वर्ताव न करें। तथा दूसरी नई सनद न मांगे। लिखा तारिख ७मी माहे ऊर्दी बेहेस्त मुताबिक रखीऊल अवल सन ३७ जुलसी।
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बादशाही फरमानों में, ऊपर के भाग पर, बहुत करके वैसे ही चित्र चित्रित । किये जाते हैं जैसे प्रथम नंबर वाले फरमान में दिखाई देते हैं । परंतु इस | फरमान में और ही प्रकार के दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं। मुख्य कर मध्य का जो चित्र है वह एक देव-मंदिर के आकार का सा है। शायद यह इस लिये बनाया।
गया हों कि, यह फरमान खास कर देवमंदिरों की ही रक्षा के निमित्त दिया गया। । है इस लिये उस अर्थ का सूचक यह चित्र ऊपर चित्रित कर दिया गया हों।
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