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कष्ट न दिया। केवल शत्रुवर्ग ही को उस ने गतगर्व और वनवासी बनाया- औरों को नहीं। दक्षिण में जाता हुआ बादशाह तापी नदी के किनारे पर पहुंचा। उस ने, अपने तट पर लगे हुए विशाल वृक्षों की गहरी और शीतल छाया द्वारा । हाथी, घोडे आदिकों को आश्वासन दे कर, सुंदर फलों द्वारा सैनिकों के मन । संतुष्ट कर और नये नये कोलम पत्रों द्वारा सुखद शय्या का सुख दे कर,
बादशाह का स्वागत किया । आगे जाने पर काबेरी नदी आई, जिसने भी । | अकबर के सैन्य का मार्गजन्य परिश्रम दूर करने के लिये, अपने किनारे पर खडे हुए उँचे उँचे झाडों की पत्रावलि द्वारा, हाथ में पंखा लिये हुए मानों दासी
का रूप धारण कर, अकबर का आतिथ्य सत्कार किया। इस को पार कर, । दक्षिण के विविध देशों में लीला पूर्वक विचरण करते हुए बादशाह ने विना ही।
श्रम से मलयाचल को अपना जयस्तंभ बनाया। | वहां के राजाओं के खजानों में से अगण्य धन प्राप्त कर बादशाह ने पश्चिम की और अपना सैन्य प्रवाह बहाया । पश्चिम दिशा में जाने से तो सूर्य का तेज भी क्षीण हो कर अंत में अस्त हो जाता है पर अकबर के विषय में इस से उलटी बात हुई । इस दिशा में जाने से शत्रुओं को दुःसह ऐसा इस बादशाह का । तेज दुगुना प्रज्जवलित हुआ। शत्रु नृपतियों की दुःखपीडित स्त्रियों के संतापपूर्ण
हृदयों में से जो कष्ट भरे निःश्वास निकलते थे उन्हों ने अकबर के शौर्यरूप । अग्नि को अधिक उदीप्त करने में प्रचंडपवन का काम दिया । बहुत से राजाओं ने अपना गर्व छोड कर, स्त्री वेषधारी नर्तक के समान, स्त्री के वेष को पहन कर । और दीन हो कर राजाधिराज अकबर की, जो शत्रु को भी नम्र हो जाने पर पूर्ण शरत देता है, शरण ली। | इस प्रकार पश्चिम में विजयी हो कर, अनेक नृपतियों का पराभव करता हुआ और कुबेर के समान विपुल ऐश्वर्यवान् बन कर, कुबेर ही की दिशा जो उत्तर है उस की और बादशाह चला । पराक्रमियों में प्रधान और अपनी आज्ञा का पालन कराने में आग्रही ऐसे बादशाहने, जिस प्रकार दही का मंथन कर उस का सार-नवनीत- निकाल लिया जाता है वैसे, उत्तर देशों का दलन कर वहां का सर्वस्व अपने स्वाधीन किया। धरातल के इन्द्र समान इस नृपराजने, उत्तर में ठेठ हिमालय की उस तराई में जा कर अपने सैन्य को ठहराया जहां दावानल
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सारमात्मा
Imen
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