Book Title: Kruparaskosha
Author(s): Shantichandra Gani, Jinvijay, Shilchandrasuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 73
________________ A ALALALAMIndaNLIMILAII AAAAAAADMINI LAAAAAAAAAAAAAAAAAAAMIRPURIHARATISALC धनुष्य धारियों में यह सब से प्रथम पंक्ति में गिना जाने लगा। बाबर ने इस को सब प्रकार से योग्य जान अपना राज्यमुकुट इसे पहनाया। इस हुमायु नृप के । चोली- बेगम नाम की, विष्णु को लक्ष्मी की तरह, प्रिय स्त्री थी। जिस तरह, अनेक ताराओं के रहने पर भी रोहिणी ही चंद्र को अधिक प्रिय होती है वैसे। अनेक स्त्रियों में भी हुमायु को यही अधिक प्रेम पात्री पत्नी थी। मालूम होता है । कि इस रानी के मुख और नेत्र से ही पराजित हो कर चंद्र और हरिण दोनों इकठे हुए हैं और उन पर-रानी के मुख और नेत्र पर विजय प्राप्त करने के लिये एकांत में कोई परामर्श चला रहे हैं। अन्यथा चंद्र जो गगनगामी है और हिरण जो भूचारी है, इन दोनों का एक स्थान पर संगम कैसे हों ? यह अपने शरीर पर जो गहने पहनती थी उन से इस के शरीर की शोभा नहीं बढती थी परन्तु इस के शरीर की कांति से उन आभूषणों की सुन्दरता बढती थी। अर्थात् रानी। का सौन्दर्य ही भूषणों का आभूषण था । इस तरह राजा और रानी के राज्यलक्ष्मी भोगते हुए कुछ समय व्यतीत हुआ। ___ जैसे रत्न की खान श्रेष्ठ रत्नों को धारण करती है वैसे ही इस रानी ने एक समय सूर्य के समान तेजस्वी गर्भ को धारण किया। यह गर्भ अपने निर्मल कुल को हर्ष पैदा करने वाला हो कर सुन्दर स्वप्नों से भावी महान् अभ्युदय की। सूचना करने वाला था । रानी ने, इस गर्भ के अनुभाव से अनेक उत्तम उत्तम स्वप्न देखे । अच्छे अच्छे दोहद भी उत्पन्न हुए जिन को बादशाह ने पूर्ण किये। गरीब गुरबों को बहुत सा उस ने दान दिया। अप्रिय करने वालों की तरफ भी उस ने अपना सद्भाव बताया तथा दासीजनों के कठोर भाषण करने पर भी कभी असभ्य शब्द नहीं निकाला। संपूर्ण दिन हो जाने पर, जिस तरह पूर्णिमा पूर्ण चंद्र को प्रकट करती है वैसे उस बेगम ने सर्वांग सुन्दर और पूर्ण भाग्यवान् । पुत्र को जन्म दिया। बादशाह हुमायु ने पुत्र का खूब जन्मोत्सव किया । जगह जगह पर । वेश्याओं के नाच, कुल कामिनियों के गान और याचकों के शुभाशीर्वाद हुए। अच्छा शुभ दिन देख कर बादशाह ने अपने पुत्र का 'अकबर'' ऐसा नाम HTRAMAnuin - - --------- a Seem u atanAmAALAkashKALALLaali MANADANMaankMWA ___+ विद्वान् लोक 'अकबर' शब्द का यह अर्थ करते हैं किः- 'अ' विष्णु, 'क' काम और आत्मा; इन तीनों में जो 'वर' श्रेष्ठ जैसा-अर्थात् विष्णु के जैसा समर्थ, काम के जैसा सौंदर्यवान् और आत्मा के जैसा निर्मल-वह अकबर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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