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कृपारसकोशका संक्षिप्तसार ।
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(नोट: इस प्रबन्ध में लेखक ने फक्त काव्यदृष्टि से वर्णन किया है । कवि | का कर्म केवल अकबर की प्रशंसा करने का था न कि जीवन चरित्र लिखने का । इस से पढ़ते समय पाठक इतिहास की ओर लक्ष्य न रक्खें ।)
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स परमात्माने अपने ज्ञान स्वरूप नेत्र से संपूर्ण जगत् को हस्तस्थितआमलक की तरह देखा है, राग-द्वेष रहित जिस ज्ञानात्माने अखिल विश्व को ज्ञान द्वारा व्याप्त किया है और अनुग्रहबुद्धिवाले जिस भगवान्ने सब | जनों के हित की चिन्ता की है, उपकार के भार को वहन करने में वृषभ के समान उस समर्थ स्वामी का हम ध्यान - चिन्तन करते हैं। जिस को न लोभ है, न क्षोभ है, और न काम-क्रीडा है; जो दोषों का पोषण भी नहीं करता और रुष्ट-तुष्ट भी नहीं होता; तथा संसार के सभी भाव जिस को स्फुट तया ज्ञात है उस परम पुरुष की हम उपासना करते हैं । सुख-दुःख आदि द्वन्द्वों से रहित | ऐसे जिस पवित्र प्रभुने इस जगत् को सनाथ-रक्षित किया है, आप्तपुरुषों के द्वारा कथित होने पर भी जिस का अलक्ष्य - चरित्र, स्थूल दृष्टि वाले सामान्य जनों को दुर्लक्ष्य ही है, विविध प्रकार की वचन - भङ्गियों द्वारा भी जिस के वचनों का भाव कहना अशक्य है और महान् योगियों को भी जो अगम्य है उस सुन्दर गुण वाले तथा सर्वदा श्रेष्ठ - आनंदवाले परमात्मा को नमस्कार है । सामुद्रिक लहरों से जिस प्रकार उस का मध्यवर्ती द्वीप अनाच्छादित रहता है वैसे परमात्मा भी सांसारिक अविद्यायों से सदा अलिप्त है यह परमेश्वर, अमर्यादित ऐसे संसार समुद्र के भी उस अनिर्वचनीय- पार पर विराजित है । अथाह ऐसे सागर के भी कमल क्या ऊपर नहीं रहता ?
हृदय को रंजन करने वाले उस सज्जन को हमारा नमस्कार है जो अप्रियव्यक्ति के विषय में भी प्रिय भाषण और प्रिय कार्य करने वाला है । क्यों कि उस के मन और जीह्वा को ब्रह्माने किसी अच्छे मधुर और निर्मल द्रव्य से बनाया है । सज्जनों का उपकारी वह खल (दुर्जन) भी सत्कार करने योग्य है
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