Book Title: Kruparaskosha
Author(s): Shantichandra Gani, Jinvijay, Shilchandrasuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 31
________________ इत्यादि प्रश्नो के उत्तर भी, जो प्रत्येक पुस्तक संपादक को देने आवश्यक हैं, दिये जा चुके । इस वृत्तांत से पाठकों को यह भी ज्ञात हो जायगा, कि अकबर | जैसे महान् बादशाह के दरबार में भी जैन आचार्य और जैन- विद्वान् अपनी साधुता और विद्वत्ता के कारण कैसा उच्च सत्कार और सन्मान प्राप्त कर सके थे । दूसरा, यह भी मालूम हो जायगा कि जैन साधु, जिन का जीवन केवल जगत् की भलाई के निमित्त और परोपकार के लिये सर्जन हुआ है, अपने | उद्देश्य को किस तरह सफल करते थे । सचमुच ही जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि ने अपने पवित्र चरित्र और दैवी जीवन से जगत् के जीवों का बहुत बडा उपकार किया । उन्हों ने वह काम कर बताया जो नितान्त अशक्य और असंभव जैसा था ! जिन मनुष्यों में का सामान्य मनुष्य भी मांस खाये विना | एक दिन भी चैन में नहीं निकाल सकता उन में के, एक दो को नहीं, परंतु लाखों मनुष्यों को और बडे बडे सत्ताधीशों को, महिनों तक मांस खाये विना रहने पडने वाला काम; तथा, जिन कत्लखानों में प्रतिक्षण हजारों प्राणियों के | गले पर छुरी फरा करती और रक्त का प्रवाह चले करता, उन में, महिनों पर्यंत खून का एक बिन्दू तक भी नहीं गिरने वाला वृत्तांत, अशक्य और असंभव नहीं तो और क्या कहा जा सकता है ? अकबर बादशाह ने इस प्रकार महिनों तक अपने राज्य में जीववध के न करने के जो मनाई हुक्म किये थे इस का जिक्र बरदाउनी जैसे प्रसिद्ध | इतिहास-लेखक ने भी किया है - "In these days (991-1583 A.D.) new orders were given. The killing of animals on certain days was forbidden, as on Sundays because this day is sacred to the Sun, during the first 18 days of the month of Farwardin; the whole month of Abein (the month in which His Majesty was born), and several other days to please the Hindoos. This order was extended over the whole realm and capital punishment was inflicted on every one who acted against the command." (Badaoni. P.321.) अर्थात् - "इन दिनों में (९९१ ही०= सन् १५८३) नये हुक्म जारी किये गये । कितनेक दिनो में, जैसे कि, रविवार के दिनो में; क्यों कि ये दिन सूर्य के हैं, इस लिये पवित्र हैं; फरवर दीन महिने के पहले १८ दिनो में, अबेन महिना कि Jain Education International २२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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