Book Title: Kruparaskosha
Author(s): Shantichandra Gani, Jinvijay, Shilchandrasuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 29
________________ - ---- ---- ---- -- - - - --- - - - - - - --- - - iARATHI MAnnauka उपाध्याय श्रीशांतिचन्द्रजी के चले आने बाद भानुचंद्र और सिद्धिचंद्रदोनों गुरु शिष्य - (जो बाणभट्ट की विश्वविख्यात कादंबरी के प्रसिद्ध टीकाकार हैं) अकबर के दरबार में रहे और शांतिचंद्र ही के समान बादशाह से सम्मानित हुए। भानुचंद्र ने अकबर को "सूर्यसहस्रनाम' पढाया। सिद्धिचंद्र भी शांतिचंद्र ही के समान शतावधानी थे इस से इन की प्रतिभा के अद्भुत प्रयोग देखकर बादशाह ने इन्हें “खुशफहेम" की मानप्रद पदवी दी । ये फारसी- भाषा के भी अच्छे विद्वान् थे इस लिये और भी बहुत से अकबर के दरबारियों के साथ इन की अच्छी प्रीति हो गई थी। इन गुरु-शिष्यों द्वारा। विजयसेनसूरि, जो हीरविजयसूरि के उत्तराधिकारी आचार्य थे, की विद्वत्ता का हाल सुन कर अकबर ने उन्हें मिलने के लिये लाहोर बुलवाये । अकबर का यह आमंत्रण आया तब ये जगद्गुरु के साथ गुजरात के राधनपुर शहर में वर्षाकाल रहे हुए थे । हीरविजयसूरि ने इन्हें लाहोर जाने की आज्ञा दी और तदनुसार विहार कर वे वहां पहुंचे । बादशाह ने इन का भी यथेष्ट सन्मान किया और मुलाकात ले कर बडा खुश हुआ । लाहोर में इन्हों ने अकबर के आग्रह से, भानुचंद्रजी को उपाध्याय - पद प्रदान किया। इस पद्वी के महोत्सव में श्रावकों ने बड़ा भारी जलसा किया जिस में शेख अबुल-फजल ने भी ६०० रूपये और । कितने ही घोडे आदि याचकों को दान में दिये। श्रीमत्सूरिवरो व्यधत्त वसुधावास्तोष्प तेराग्रहेणोपाध्यायपदस्य नन्दिमनघां श्रीभानुचंद्रस्य सः । शेखो रूपकषट्शतीं व्यतिकरे तत्राश्ववानादिभिर्भक्तश्राद्ध इवार्थिनां प्रमुदितो विश्राणयामासिवान् ॥ हीरसौभाग्य। विजयसेनसूरि ने अकबर के दरबार में बहुत से विद्वानों के साथ वाद कर विजय-पताका प्राप्त की । इन के शिष्य नन्दिविजय, जो भी अप्रतिम । प्रतिभाशाली पुरुष थे, ने अकबर के सामने अति उत्कट ऐसे आठ अवधान किये । बादशाह के सिवा मारवाड के राजा मल्लदेव के पुत्र उदयसिंह, कच्छ के नृपति मानसिंह, खानखाना, शेख अबुलफजल, आजमखान और जालोर के गजनीखान आदि बहुत से राजा महाराजा और बडे बडे अफसर भी इस सभा | में विद्यमान थे । नन्दिविजय का इस प्रकार का बुद्धि कौशल देख कर सभी mhalayaNALLIAsmitanylamidRLALLA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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