Book Title: Kruparaskosha
Author(s): Shantichandra Gani, Jinvijay, Shilchandrasuri
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 27
________________ Pa - be - -- - कर उपाध्यायजी ने उस की प्रशंसा में इस “कृपारसकोश' की रचना की। १२८ पद्य के इस छोटे से काव्य में, अकबर के शौर्य, औदार्य और चातुर्य आदि गुणों का संक्षेप में, परन्तु बडी मार्मिकता से, वर्णन किया गया है । अकबर इस कृपारस का श्रवण द्वारा पान कर बहुत तृप्त हुआ। इस तृप्ति के उपलक्ष्य में, | उस ने हीरविजयसूरि की जगत् की भलाई के वास्ते जो जो शुभ इच्छायें थी वे सब, उपाध्यायजी के कथन से, पूर्ण की । इस ग्रंथ के, अंत के, १२६-७ वें। | पद्यों में स्पष्ट लिखा है कि "इस बादशाह ने जो जजिया कर माफ किया, उद्धत मुगलों से जो मंदिरों का छुटकारा हुआ, कैदमें पडे हुए कैदी जो बंधन रहित हुए, साधारण राजगण भी मुनियों का जो सत्कार करने लगा, साल भर में छः महिने तक जो जीवों को अभयदान मिला और विशेषकर, गायें भैंसें बेल और पाडे आदि जो पशु कसाई की छुरि से निर्भय हुए; इत्यादि शासन की- जैनधर्म की समुन्नति के जगत्प्रसिद्ध जो जो कार्य हुए उन सब में यही ग्रंथ (कृपारस। कोश) उत्कृष्ट निमित्त हुआ है - अर्थात् इसी ग्रंथ के कारण उपर्युक्त सब कार्य बादशाहने किये हैं।” १२१ वें पद्य का | भूयस्तरां परिचितेर्विदितस्वभावः स्वामी नृणामयमयाचि मया कृपार्थम् । यह पूर्वार्द्ध खास ध्यान खींचने लायक है । उपाध्यायजी कहते हैं कि- मैंने बादशाह के पास इन सुकृत्यों की जो याचना की है वह एकदम नहीं की। मेरा बादशाह से बहुत बहुत परिचय हुआ और मैंने उस के स्वभाव को ठीक ठीकजान लिया । जब बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ और मैंने यह निश्चित कर लिया ।। | कि इस समय इस से जो कुछ कहा जायगा वह स्वीकार करेगा तब, मैंने उस के पास प्राणियों के हित के लिये, इन बातों की याचना की। बादशाह के ये सब कार्य कर देने पर, सूरिजी को इन की खुश खबर देने के लिये तथा उन के दर्शन करने के लिये उपाध्यायजी ने अकबर से गुजरात में जाने की इजाजत मांगी। शांतिचन्द्रजी ने, अपने ही समान विद्वान् और अपने खास सहाध्यायी भानुचन्द्र नामक पंडित को अकबर के दरबार में छोड कर, आप गुजरात को रवाना हुए। फतहपुर से चल कर कुछ महिनों की मुसाफिरी बाद उपाध्यायजी पट्टन पहुंचे और वहां पर जगद्गुरु के दर्शन किये । बादशाह के उन सब सुकृत्यों का हाल, जो उस ने उपाध्यायजी के कथन से किये थे, MARATHAMITRA SAILI M AL साम W AIMIMILAIM I MIRAMMARNAMAARAMMAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnal Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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