Book Title: Karmarth Sutram
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Agamoddharak Granthmala

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Page 9
________________ पहेला कर्मभेदाधिकारमा कर्मना आठ मेद अने उत्तरमेदो दर्शावाया छे आमां १-२४ सूत्रो छे त्यार पछीना छ सूत्रो (२५-३७) मां २ सूत्रो १४ गुणस्थानक तथा जीवस्थानना नामोनां छे. पछीना चार सूत्रोमा ते ते जीवस्थानकोमा केटला केटला गुणस्थानको होय छे ते जणाव्युं छे त्रीजो योगाधिकार (३१-३७) सात सूत्रो द्वारा दर्शाव्यो छे आमां एक सूत्र द्वारा योगना भेदो नामसहित जणाववामा आव्या छ पछीना छ सूत्रो द्वारा १४ जीवस्थानकोमा कया कया योगोनु अस्तित्व होय ते प्ररूप्यु छे. पछी उपयोगाधिकार-लेश्याधिकार विगेरे अधिकारो छे. महत्ता : जेम नाना नाना परन्तु निरंतर वहेता निर्मल झरणाओ विशाल नदीनु सर्जन करे छे तेम सर्वस्व अर्पणनी तमन्ना अद्वितीयधैर्यता सत्यप्रत्येनी अविचल वफादारी विगेरे गुणो (मानवीमां) महानतानु सर्जन करे छे आ महानता तेओना नानामां नाना कायो मां पण देखाइ आवे छे आवी आ एक लघुकृति छे जे आगमोनी-'अप्पग्गंथ महत्थ” तेमज लौकिक-बिंदुमां सिंधुनी उक्तिने सार्थक करावती बहु थोडा सूत्रो द्वारा विशाल अर्थ-भावार्थ आवरी लइने कृतिकारनी महानताने दर्शावती जाय छे. महानपूर्वज : विक्रमनी १९ मी सदीनो सूर्य हजी मध्याह्ने आव्यो न हतो (१९ मी सदीनी शरुआत)। जतिओ, श्रीपूज्यो, भट्टारकोनी सत्ता घसाती रही हती वादलघेरी अमासनी घोर अंधारी रजनीमा जेम कोक कोक तारलिया चमकता होय तेम शासनमा संवेगी मुनिओमा पण सनातनीभो-स्थानकवासीबो-तेरापंथीओ-दिगम्बरो-त्रिस्तुतिक (त्रणथोय)

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