Book Title: Karmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Author(s): Shivsharmsuri, Gunratnasuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
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प्रस्तावना
शासनप्रभावक पूज्यपाद आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. आपश्री ने युवावस्था में संयम लेकर पूज्यों के चरणों में जीवननैयाका सुकान सोपा । गुरु कृपा के बल पर स्वाध्याय संयम की साधना में आगे बढते गये। प्रारंभिक जीवन में आप की प्रज्ञा इतनी अद्भुत थी कि एक तरफ सिर पर लोच की भीषण वेदना सहते और दूसरी तरफ कम्मपति के पदार्थों का पुनरावर्तन पूर्ण कर लेते थे । आप श्री गुणानुरागी प्रकृति के है निंदाविकथा से सदैव दूर रहते है । आपश्री विराग सेभरपूर वक्तृत्व कला के धनी हैं । शारिरीक शक्ति से कमजोर होते हुए भी आत्मशक्ति के बल पर आबाल वृद्ध अनेक जीवों को आराधना के पथ पर प्रयाण कराते हैं । विहरमान तीर्थंकर सीमंधरस्वामी के अट्ठम तप की आराधना इतनी सुन्दर करते हैं कि इस भरत क्षेत्र में भी महाविदेह क्षेत्र जैसा माहोल खडा हो जाता है । आपश्री करीब १७ शिष्य प्रशिष्यों के गुरुपद पर सुशोभित है ।
युवक जागृति प्रेरक पूज्यपाद आचार्य श्री गुणरत्नसूरीश्वरजी म. सा. पूज्यपाद श्रीने २१ वर्ष की युवावस्था में संयम स्वीकार करके पूज्यों के श्री चरणों में जीवन अर्पण कीया | परमगुरु श्री प्रेमसूरीश्वरजी म० साहेब की सेवा को ही जीवन का मूलमंत्र बनाया | अन्य दीक्षा - पर्याय में ही व्याकरण न्याय कर्मसाहित्य का अगाध अध्ययन किया । ४ वर्ष लघुपर्याय में ही विद्वद्गम्य प्रस्तुत टंका का सर्जन किया। उसके बाद स्वोपज्ञ-वृत्ति युक्त साधिक १७ हजार श्लोक प्रमाण खवग सेढी ग्रन्थ एवं करीब २० हजार श्लोक प्रमाण विहाण के पर्याङ बन्धो ग्रन्थ की टीका का आलेखन किया ।
आप श्री के गुरुदेव मेवाड देशोद्धारक जितेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. है (संसारी ज्येष्ठ भ्राता)। आप श्री का वैराग्य इतना प्रबल था कि अपने १४ वर्ष के पुत्र को संसारी बंधुओ को सोप कर आपश्री एवं आपश्री की धर्मपत्नी ने संयम स्वीकार कीया ।
१४ पूर्वधर महर्षि शय्यंभवसूरि महाराजा की "देह दुःखं महाफलम् " की उक्ति को समक्ष रखते हुए ४०० अट्टम की घोर तपश्चर्या की । मेगड भूमि पर जिनबिम्ब व जिनालय की दुःसह दशा को देखकर पूज्यश्री का हृदय कांप ऊठा अतः आपने आपत्ति के पर्वतों को लांघते हुए मेवाड की धरती पर विचरने लगे आपश्री के अथांग परिश्रम की फलश्रुति रुप शताधिक जिनालयों का जीर्णोद्धार, नवनिर्माणादि कार्य सम्पन्न हुआ |
इसी प्रकार उपधान, उद्यापन, छरीपालित संघ, ज्ञान भंडारो के माध्यम से हजारों आत्माओं के हृदय में रत्नत्रय को अंकुरित कीया हैं | आपश्रीने उत्तरपयडि- रसबंध ग्रन्थ पर टीका का सर्जन व अन्य कर्मसाहित्य सम्बन्धि ग्रन्थों का संपादनादि कार्य कीया है ।
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