Book Title: Karmaprakrutigatmaupashamanakaranam
Author(s): Shivsharmsuri, Gunratnasuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रस्तावना
१२ ]
पृष्ठसंख्या १८७ पर सरसरी नजर से विरुद्ध दिखने वाले पदार्थों को संगत करने का प्रयास किया गया है । जैसे कि उपशमनाकरण में दो आवलिका शेष रहने पर आगालविच्छेद के समय पर ही पुरुषवेद में हास्यपटक संक्रम नहीं होता है अर्थात् पुरुषवेद की पतग्रहता नष्ट होती है, परन्तु संक्रमकरण में पुरुषवेद की प्रथमस्थिति समयोन दो आवलिका शेष रहने पर पतग्रहता नष्ट होती है इस प्रकार उल्लेख है।
इन दो शास्त्रपाठों का समाधान करने के लिए पूज्यपाद टीकाकार श्री ने बताया कि दो आवलिका शेष रहने पर पुरुषवेद में हास्यषटक का संक्रम नहीं होता हैं यह बात निश्चयनय से कहीं गई है कारण कि निश्चयनय क्रियाकाल और निष्ठाकाल का एकत्व मानता है, अन्यथा अतिप्रसङ्ग आ जाता है । अतः तदनुसार पुरुषवेद में व्यवच्छिद्यमान संक्रम व्यवच्छिम कहा जाता है।
संक्रमकरण में समयोन दो आवलिका कहा है वह व्यवहारनय से कहा गया है क्योकि व्यवहारनय क्रियाकाल और निष्ठ काल में भेद मानता है अन्यथा क्रिया (कारण) का वैयर्थ्य सिद्ध हो जाएगा। अतः तदनुसार व्यवच्छिद्यमान १ समय बाद (Next) व्यवच्छिन्न होता हैं ।
इस प्रकार दोनों नय स्यावाद की दृष्टि कथश्चिद् सत्य हैं । अंत में पूज्यपाद टिकाकार श्रीने "तत्वं तु केवलिनो विदन्ति । " एसा कहकर अपनी लघुता बताई है।
विशेष तो टीका का महत्व तो तद्घिषयनिष्णात ही जान सकता है क्योकि हिरे ( Diamond) की किंमत जौहरी ( Jwellar ) ही कर सकता है ।
प्रेमगुणा टीका का संशोधन शास्त्रविशारद, द्रव्यानुयोग विशेषज्ञ पूज्यपादाचार्यदेव श्रीमद् उदयमुरिश्वरजी म.सा. एवं सिद्ध न्तमहोदधि कर्ममाहित्य निष्णात पूज्यपादाचार्यदेव श्रीमद् प्रेमसूरिश्वरजी म. सा ने कीया । माथ-साथ पूज्यपाद जयघोषभूरीश्वरजी म.सा. धर्मजिन्सूरीश्वरजी म.सा. एवं हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. ने भी संशोधन कार्य में हाथ बटायां। संजोगवशात सर्वप्रथम सर्जित प्रेमगुणाटीका का प्रकाशन नहीं हो सका। पूज्यपाद श्री गुरुदेव श्री द्वारा रचित खवगसेढी, पयडिबंधो पर टीका एवं अन्य विदद्वर्य मुनिपुङ्गवों द्वारा रचित ग्रन्थ प्रकाशित हो गये । अब प्रस्तुत टीका स्वरूप अन्तिम ग्रन्थ का पूर्वाध प्रकाशित हो रहा है उसका मुझे अत्यंत हर्प है।
आशीषदाता पूज्यपाद गच्छाधिपति पदार्थसंग्रहकार एवं टीकाकार महर्षियों का संक्षिप्त परिचय____ आशीर्वाददाता पूज्यपदाा सुविशालगच्छाधिपति न्यायविशारद आचार्य देव श्रीमद् विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराजा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org