Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 18
________________ पर्याय-पर्याय-समासादिविंशतिसंख्यान् श्रुतज्ञान-भेदानावृणोतीति श्रुतज्ञानावरण-कर्म। ये मूकामूर्खाश्चात्र स्युः ते श्रुतज्ञानावरणोदयेनैव। रूपीद्रव्य-भवांतर-प्रत्यक्ष- परिच्छेदकानुगाम्यननुगामिवर्द्धमानहींयमानावस्थितानवस्थित भेदमिन्नषट्विधावधिज्ञानाच्छादकमवधिज्ञानावरणं। सूक्ष्म पदार्थप्रत्यक्ष-परिज्ञायकं ऋजुविपुलमतिभेदेन द्विविधं मनःपर्यय-ज्ञानं तदावरणकारणं मनःपर्ययज्ञानावरणं द्विविधं उत्तरोत्त रप्रकृतिभेदेन। त्रिकालविषयसमस्तलोकालोक- द्रव्यगुणपर्याययुगपत् -प्रत्यक्षप्रकाशकं केवलज्ञानमावृणोतीति केवलज्ञानावरण। जो कर्म पर्याय,पर्याय समास आदि 20 प्रकार के श्रुतज्ञान के भेदों को आवरण करता है उसे श्रुतज्ञानावारण कर्म जानना चाहिये। यहां जो मूक और मूर्ख जन है वे श्रुतज्ञानावरण कर्म के उदय के कारण है। भवांतर रूपी द्रव्य को जानने वाला अनुगामी, अननुगामी, वर्द्धमान, हीयमान, अवस्थित और अनवस्थित छह भेदों वाले अवधिज्ञान को आच्छादन करने वाला ज्ञान अवधि ज्ञानावरण है। सूक्ष्म पदार्थो का जानने वाला ऋजु- विपुलमति के भेद से दो प्रकार के मनः पर्यय ज्ञान को आवरण करने वाला मनःपर्यय ज्ञानावरण कर्म है। त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थो को जानने वाले तथा लोकालोक के समस्त द्रव्य, गुण एवं पर्यायों को एक समय में युगपत् जानने वाले ज्ञान को आवरण करने वाले कर्म को केवल ज्ञानावरण कर्म कहते है। (11) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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