Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 66
________________ स्थितिबंधः कर्मणां स्थितिहंतारं नत्वानंतगुणांबुधि। स्थितिबंधसमासेन वक्ष्ये तत् स्थितिहानये।। पंचज्ञानावरणनवदर्शनावरणासातवेदनीयपंचांतरायकर्मणां उत्कृष्टास्थितिवंधस्त्रिंशत्कोटिकोटिसागरप्रमाणः। मिथ्यात्वस्य उत्कृष्टास्थितिः सप्ततिकोटिकोटिसागरप्रमाणः। सातवेदनीयस्त्रीवेदमनुष्यगतिमनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वाणां उत्कृष्टास्थितिः पंचदशसागरोपमकोटीकोट्यः। षोडशकषायाणां परमः स्थितिबंधः जलधीनाम् चत्वारिंशत्कोटिकोट्यः। पुंवेदहास्यररिदेवगतिसमचतुयसंस्थानबजर्षभनाराचसंहननदेवगतिप्रायोग्यानुपूर्वप्रशस्तविहायोगतिस्थिरशुभसुभगसुस्वरादेय-यशःकीर्ति कर्मों की स्थिति को नष्ट करने वाले और अनंत गुणों के सागर ऐसे अहँत और सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार कर, मैं अपने कर्मों की स्थिति को नाश करने के लिए संक्षेप में प्रकृति बंध के पश्चात् स्थिति बंध को कहूँगा। पांच ज्ञानावरण, नवदर्शनावरण, असातावेदनीय, पांच अंतराय, का उत्कृष्ट स्थिति बंध 30 कोड़ा कोड़ी सागर प्रमाण है। मिथ्यात्व का उत्कृष्ट स्थिति बंध सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है। सातावेदनीय, स्त्रीवेद, मनुष्यगति, मनुष्यगत्वानुपूर्वी का उत्कृष्ट स्थितिबंध 15 कोड़ाकोड़ीसागर है। सोलह कषायों का उत्कृष्ट स्थिति बंध चालीस कोड़ाकोड़ीसागर है। पुंवेद, हास्य, रति, देवगति, समचतुरस्रसंस्थान, वजवृषभ- नाराचसंहनन, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, प्रशस्तविहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति, उच्च गोत्र का (59) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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