Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala
View full book text
________________
असंयत
177
देशसंयत
| 67
प्रमत्त संयत | 63
43 (उपर्युक्त 46 | 10 (अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क, - तीर्थंकर वजर्षभनाराच संहनन, औदारिक मनुष्यायु, देवायु) शरीर, औदारिकांगोपांग,
मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी
और मनुष्यायु) 53 (उपर्युक्त43 |4 (प्रत्याख्यानचतुष्क) +असंयत गुणस्थान की व्युच्छिन्न 10 प्रकृतियाँ) 57 (उपर्युक्त 53 |6 (अस्थिर, अशुभ, + देशसंयत
असातावेदनीय, अयशःकीर्ति, गुणस्थान की
अरति और शोक) व्युच्छिन्न 4 प्रकृतियाँ) 61 (उपर्युक्त 57 | 1 (देवायु) +6 अस्थिर, अशुभ असातावेदनीय, अयशःकीर्ति, अरति और शोक)-2 (आहारक द्विक)
अप्रमत्त संयत | 59
अपूर्वकरण भाग -1
भाग -6
| 56
62 (उपर्युक्त61 | 2 (निद्रा और प्रचला) + देवायु) 64 (उपर्यक्त 62 | 30 (तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्त +निद्रा और विहायोगति, पंचेन्द्रिय-जाति, प्रचला)
तैजस,कार्मणशरीर,आहारकद्विक, समचतुरस्र संस्थान, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकद्विक
स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, | (57)
Main Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124