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तथा एक सूक्ष्म लोभ की उदय व्युच्छित्ति होती है।
उपशांत मोहगुणस्थान में सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान की उदय योग्य 60 प्रकृतियों में सूक्ष्मलोभ के बिना 59 प्रकृतियों का उदय है। सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान की अनुदय योग्य 62 प्रकृतियों में सूक्ष्मलोभ मिलाने पर 63 प्रकृतियों का अनुदय है। नाराच एवं वज्रनाराच संहनन इन दो प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होती है।
क्षीण मोह गुणस्थान में उपशांतमोह गुणस्थान में उदययोग्य 59 प्रकृतियों में से नाराच, वजनाराच संहनन कम करने पर शेष 57 प्रकृतियों का उदय है। उपशांत मोह गुणस्थान में अनुदय योग्य 63 प्रकृतियों में नाराच व वजनाराच संहनन इन दो प्रकृतियों को मिलाने पर 65 प्रकृतियों का अनुदय है। ज्ञानावरण 5, चक्षु-अचक्षु-अवधिकेवलदर्शनावरण, निद्रा, प्रचला और अंतराय कर्म की पांच इन 16 प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है।
सयोग केवली गुणस्थान में वेदनीय दो, मनुष्यायु, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक, तैजस, कार्मण शरीर, औदारिक आंगोपांग, छह संस्थान, वजर्षभ नाराच संहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, अप्रशस्तविहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति, निर्माण, तीर्थंकर और उच्चगोत्र इन 42 प्रकृतियों का उदय है। क्षीणमोह गुणस्थान में अनुदययोग्य 65 प्रकृतियों में से तीर्थंकर प्रकृति कम करने तथा ज्ञानावरण 5, दर्शनावरण 4, निद्रा, प्रचला, अंतराय 5 ये 16 प्रकृतियां मिलाने पर 80 प्रकृतियों का अनुदय है। वजर्षभनाराच संहनन, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुस्वर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, औदारिक शरीर, औदारिक शरीरांगोपांग, तैजस-कार्मण शरीर, संस्थान 6, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, और प्रत्येक शरीर, इन 29 प्रकृतियें की उदय व्युच्छित्ति होती है। अयोग केवली गुणस्थान में, सयोगकेवली गुणस्थान में उदय
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