Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala
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वैक्रियकशरीरांगोपांग, मनुष्यगत्वानुपूर्वी, तिर्यंचगत्वानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय, व
अयशःकीर्ति) देशसंयत 187 | 35 | 8 (प्रत्याख्यानचतुष्क, तिर्यंचायु, तिर्यंचगति,
नीचगोत्र, उद्योत) प्रमत्तसंयत 181 41 15 (आहारकशरीर, आहारक आंगोपांग,
| स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला) अप्रमत्तसंयत | 76 4 (सम्यक्त्व, अर्धनाराच,कीलक,
| असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन) अपूर्वकरण |72 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) अनिवृत्तिकरण | 66 | 6 (स्त्री-पुरुष नपुंसकवेद, संज्वलन क्रोध,
मान और माया) सूक्ष्मसाम्पराय 60 1 (सूक्ष्मलोभ) उपशांतमोह |59 2 (नाराच व वजनाराचसंहनन) क्षीणमोह 57 16 (ज्ञानावरण 5, दर्शनावरण 4, निद्रा, प्रचला|
और अंतराय पांच) |सयोगकेवली | 42 | 80 29 (वज्रर्षभनाराचसंहनन, निर्माण, स्थिर, अस्थिर,
शुभ, अशुभ, सुस्वर, दुस्वर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति औदारिकशरीर, औदारिकशरीरांगोपांग, तैजस-कार्मणशरीर, संस्थान 6, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात, परघात,
उच्छ्वास और प्रत्येक शरीर.) अयोगकेवली | 13 | 109 13 (साता-असातावेदनीय, मनुष्यगति, मनुष्यायु,
पंचेन्द्रियजाति, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर और उच्चगोत्र)
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