Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 112
________________ उद्योतः स्थावरः सूक्ष्मः साधारणः एताः षोडशप्रकृति अनिवृत्तिगुणस्थानस्य प्रथमभागे संयतः क्षपयति। द्वितीयभागे अप्रत्याख्यानपत्याख्यानावरणा अष्टौ कषायाश्च तृतीयभागे नंपुसकवेदं चतुर्थभागे स्त्रीवेदं पंचममागे हास्यादिषट्कं षष्टमभागे पुवेदं सप्तममागे संज्वलनक्रोघं अष्टमभागे संज्वलनमानं। नवमभागे संज्वलनमायां क्षपयति। ततः सूक्ष्मसाम्रायगुणस्थाने सूक्ष्मलोभं क्षपयति। ततः क्षीणकषायस्य द्विचरमसमये निद्रा प्रचला प्रकृति क्षीणकषायी क्षपयति। ततोऽनन्तरं पंचज्ञानावरणानि चक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनावरणानि पंचांतरायाः एताश्च चतुर्दश प्रायोग्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण इन सोलह प्रकृतियों का अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के प्रथम भाग में एक साथ क्षय करता है। द्वितीय भाग में अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यान क्रोध-मान-माया और लोभ इन आठ कषायों का क्षय करता है। तृतीय भाग में नपुंसकवेद चतुर्थ भाग में स्त्रीवेद, पंचमभाग में हास्यादि छह नोकषाय, छठेभाग में पुरुषवेद सातवें भाग में संज्वलन क्रोध, आठवें भाग में संज्वलन मान और नवें भाग में संज्वलन माया का क्षय करता है। सूक्ष्मसाम्पराय नामक दशवें गुणस्थान में संज्वलन लोभ का क्षय करता है। क्षीणकषाय नामक बारहवें गुणस्थान के द्विचरम समय में क्षीण कषायी जीव निद्रा और प्रचला का क्षय करता है। इसके बाद इसी गुणस्थान के अंतिम समय में पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण एवं (105) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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