Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 116
________________ गति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, स्त्यानगृद्धि आदि 3 निद्राऐं, उद्योत, आतप, साधारण, सूक्ष्म एवं स्थावर इन 34 प्रकृतियों के बिना शेष 114 प्रकृतियों का सत्त्व है। उपर्युक्त कथित 34 प्रकृतियों का असत्त्व है। नपुंसक वेद की सत्त्व व्युच्छित्ति होती हैं अनिवृत्तिकरण के चतुर्थभाग में तृतीय भाग की सत्त्व 114 प्रकृतियों में से नपुंसकवेद के बिना 113 प्रकृतियों का सत्त्व है तृतीयभाग की असत्त्व 34 प्रकृतियों में नपुंसकवेद को मिलाने पर 35 प्रकृतियों का अत्त्व है तथा स्त्रीवेद की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। अनिवृत्तिकरण के पंचमभाग में चतुर्थ भाग की 113 प्रकृतियों में से स्त्रीवेद के बिना 112 प्रकृतियों का सत्त्व है। चतुर्थभाग में असत्त्वयोग्य 35 प्रकृतियों में स्त्रीवेद को मिलाने पर 36 प्रकृतियों का असत्त्व रहता है तथा हास्यादि 6 नोकषाय की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है । अनिवृत्तिकरण के षष्टम भाग में पंचम भाग की 112 प्रकृतियों में से हास्यादि 6 नोकषाय के बिना 106 प्रकृतियों का सत्त्व है । पंचमभाग की असत्त्वयोग्य 36 प्रकृतियों में उपर्यक्त 6 प्रकृतियां मिलाने पर 42 प्रकृतियों का असत्त्व रहता है तथा पुरुषवेद की सत्त्व व्युच्छित्ति होती हैं । अनिवृत्तिकरण के सप्तम भाग में षष्टम भाग की 106 प्रकृतियों में से पुरुषवेद के बिना शेष 105 प्रकृतियों का सत्त्व है । षष्टम भाग की 42 असत्त्व प्रकृतियों में पुंवेद मिलाने पर 43 प्रकृतियों का असत्त्व हैं। संज्चलन क्रोध की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है । अनिवृत्तिकरण के अष्टमभाग में सप्तम भाग की 105 प्रकृतियों में से संज्वलन क्रोध को कम करने पर 104 प्रकृतियों का सत्त्व रहता है। सप्तम भाग की असत्त्व 43 प्रकृतियों में संज्वलन क्रोध को मिलाने पर 44 प्रकृतियों का असत्त्व होता है तथा संज्वलन मान की (109) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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