Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 117
________________ सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। अनिवृत्तिकरण के नवम भाग में अष्टम भाग की 104 प्रकृतियों में से संज्वलन मान के बिना शेष 103 प्रकृतियों का सत्त्व है। अष्टम भाग की असत्त्व 44 प्रकृतियों में संज्वलन मान मिलाने पर 45 प्रकृतियों का असत्त्व पाया जाता है तथा संज्वलन माया की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में अनिवृत्तिकरण गुणस्थान के नवम भाग की 103 प्रकृतियों में से संज्वलन माया के बिना 102 प्रकृतियों का सत्त्व पाया जाता है। नवम भाग की असत्त्व 45 प्रकृतियों में संज्वलन माया मिलाने पर 46 प्रकृतियों का असत्त्व रहता है तथा संज्लवन लोभ की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। क्षीण मोह गुणस्थान में सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान की सत्त्व 102 प्रकृतियों में से संज्वलन लोभ के बिना शेष 101 प्रकृतियों का सत्त्व होता है। सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान में असत्त्व योग्य 46 प्रकृतियों में संज्वलन लोभ मिलाने पर 47 प्रकृतियों का असत्त्व रहता है। ज्ञानावरण 5, दर्शनावरण 4, निद्रा, प्रचला और अंतराय 5 इन 16 प्रकृतियों की सत्त्व व्युच्छित्ति होती है। ___ सयोग केवली गुणस्थान में वेदनीय दो, मनुष्यायु, मनुष्यगति, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, 5 शरीर, 5 बंधन, 5 संघात, 6 संस्थान, 6 संहनन, 3 आंगोपांग, 8 स्पर्श, 5 रस, 2 गंध, 5 वर्ण, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, देवगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति, निर्माण, तीर्थकर, नीचगोत्र एवं उच्चगोत्र इन 85 प्रकृतियों का सत्त्व रहता है। 5 ज्ञानावरण, 9 दर्शनावरण, 28 मोहनीय नरकायु, देवायु, तिर्यंचायु, नरकगति, नरक गत्यानुपूर्वी, (110) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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