Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 106
________________ प्रकृतियों के बिना शेष 104 प्रकृतियों का उदय है । उक्त तीर्थंकरादि 18 प्रकृतियों का अनुदय है । अप्रत्याख्यानचतुष्क, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, देवायु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरकायु, वैक्रियक शरीर, वैक्रियकशरीरांगोपांग, मनुष्यगत्वानुपूर्वी, तिर्यंचगत्वानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय एवं अयशःकीर्ति इन 17 प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है । पंचम देशसंयत गुणस्थान में चतुर्थ गुणस्थान में उदय योग्य 104 प्रकृतियों में से अप्रत्याख्यानचतुष्क, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, देवायु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, नरकायु, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक शरीर आंगोपांग, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय एवं अयशः कीर्ति इन 17 प्रकृतियों के बिना शेष 87 प्रकृतियों का उदय होता है। चतुर्थ गुणस्थान में अनुदय योग्य 18 प्रकृतियों में पूर्वोक्त अप्रत्याख्यान चतुष्क आदि 17 प्रकृतियां मिलाने पर 35 प्रकृतियों का अनुदय है। प्रत्याख्यानचतुष्क, तिर्यंचायु, तिर्यंचगति, नीचगोत्र एवं उद्योत, इन आठ प्रकृतियों की उदय व्युच्छित्ति होती है। प्रमत्त संयतगुणस्थान में ज्ञानावरण 5, दर्शनावरण 9, वेदनीय 2, सम्यक्त्व, संज्वलन कषाय चतुष्क, नवनोकषाय, मनुष्यायु, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक- आहारक - तैजस - कार्मण शरीर, औदारिक शरीर आंगोपांग, आहारकशरीरांगोपांग, छह संस्थान, छह संहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त - अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, प्रत्येक, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, दुस्वर, आद्रेय, यशः कीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र एवं अंतराय 5 इन 81 प्रकृतियों का उदय है । मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व अनंतानुबंधीचतुष्क, अप्रत्याख्यानचतुष्क, प्रत्याख्यानचतुष्क, नरकगति, तिर्यंचगति, देवगति, नरकायु, तिर्यंचायु, देवायु, एकेन्द्रिय जाति, विकलत्रय, वैक्रियक शरीर वैक्रियक शरीर आंगोपांग, चार आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधरण, दुर्भग, अनादेय, अयशःकीर्ति, नीचगोत्र और तीर्थंकर इन 41 प्रकृतियों का अनुदय है। आहारक शरीर, आहारक आंगोपांग, स्त्यानगृद्धि, निद्रा-निद्रा, (99) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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