Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 101
________________ -मायतनप्रतिश्रयारामविनाशक्रूरकायाक्रोशवधबंधाचादर -तीव्रकषायपापकर्मजीवनादयोऽशुभनाम्नो निमित्ताः भवति। एते सर्वे विपरीताः शुभयोगादयः शुभनामाश्रवस्य हेतवः मंतव्याः । मूढ़त्रयादिपंचविशतिदोषरहिताः निःशंकादिगुणोपेता दर्शनविशुद्धिः ज्ञानदर्शनचारित्रतपोगुरुभक्तिकरः विनयसम्पन्नता। शीलवतेषुनिरवद्याचरणानतिचारः। सिद्धान्तपठनपाठनस्मरणादिरभीक्ष्णज्ञानोपयोगः। संसारदेहभोगादिविरक्ति -जनकः संवेगः। स्वशक्तया चतुविधदानकरणं त्यागः स्वशक्त्या द्वादशप्रकारं तपः। मुनिगणासमाधिनिराकारकं साधु विनाश, आश्रय विनाश, आराम विनाश, क्रूर कार्य, आक्रोश, वध बंधन आदि में आदर, तीव्र कषाय और पापकर्म जीविका आदि अशुभ नामकर्म के आश्रव के कारण होते हैं। अशुभ नामकर्म के आश्रवों से विपरीत शुभ नाम के आश्रव के कारण जानना चाहिए। तीन मूढ़ता आदि 25 दोषों से रहित निःशंकित आदि गुणों से सहित दर्शन विशुद्धि है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप से युक्त गुरु की भक्ति करना विनय संपन्नता है। शील व्रतों में निर्दोष प्रवृत्ति शील व्रतेष्वनतिचार है। सिद्धांत ग्रन्थों का पठन पाठन स्मरणादि करना अभीक्ष्णज्ञानापयोग है। संसार, देह एवं भोगादि से विरक्ति रहना संवेग है। अपनी शक्ति के अनुसार चार प्रकार का दान करना स्वशक्ति त्याग है। अपनी शक्ति के अनुसार बारह प्रकार का तप करना शक्तितस्तप है। मुनियों की असमाधि का निराकरण अर्थात् (94) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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