Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 74
________________ साता मूल-उत्तर प्रकृतियों की उत्कृष्ट और जघन्यस्थितिसंबंधी संदृष्टि प्रकृतियाँ स्थितिबन्ध मूल प्रकृति उत्तरप्रकृति उत्कृष्ट जघन्य ज्ञानावरणीय मतिज्ञानावरणादि पांच | 30 कोड़ाकोड़ी सागरो. | अन्तर्मुहूर्त दर्शनावरणीय निद्रा-निद्रा, 30 कोडाकोड़ी सागरो. | 3/7 सा.* प्रचला–प्रचला 30 कोड़ाकोड़ी सागरो. | 3/7 सा.* व स्त्यानगृद्धि 30 कोड़ाकोड़ी सागरो. | 3/7 सा.* निद्रा व प्रचला 30 कोड़ाकोड़ी सागरो. | 3/7 सा.* चक्षु, अचक्षु, 30 कोड़ाकोड़ी सागरो. | अन्तर्मुहूर्त अवधि व केवलदर्शन | 30 कोड़ाकोड़ी सागरो. । | अन्तर्मुहूर्त | वेदनीय 15 कोड़ाकोड़ी सागरो. | 12 मुहूर्त असाता 30 कोड़ाकोड़ी सागरो. 3/7 सा.* मोहनीय (अ) दर्शनमोहनीय | मिथ्यात्व 70 कोडाकोड़ी सागरो. | 7/7 सा.* (आ) चारित्रमोहनीय | अनंतानुबंधी 4 40 कोड़ाकोड़ी सागरो. 4/7 सा.* | (1) कषायवेदनीय अप्रत्याख्यान 4 40 कोड़ाकोड़ी सागरो. 4/7 सा.* प्रत्याख्यान 4 40 कोड़ाकोड़ी सागरो. 4/7 सा.* संज्वलन क्रोध 40 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2 मास संज्वलन मान 40 कोड़ाकोड़ी सागरो. 1 मास संज्वलन माया 40 कोड़ाकोड़ी सागरो. __1 पक्ष संज्वलन लोभ 40 कोड़ाकोड़ी सागरो. अन्तर्मुहूर्त (2) नोकषायवेदनीय | स्त्रीवेद 15 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* पुरुषवेद 10 कोड़ाकोड़ी सागरो. 8 वर्ष नपुंसकवेद 20 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* हास्य 10 कोडाकोड़ी सागरो. | 2/7 सा.* रति 10 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* 20 कोडाकोड़ी सागरो. 2/7 सा.* 20 कोड़ाकोड़ी सागरो. | 2/7 सा.* 20 कोड़ाकोड़ी सागरो. 2/7 अरति शोक भय (67) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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