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परस्त्रीधनादानचिंतन-विषयसुखासौंदर्यस्मरण-कुशास्त्रादिधारणा-मिथ्या- देवप्रशंसाघशुभचिंतनेन च संसारी अशुभ - प्रकृतिप्रदेशबंधौ बध्नाति। . ज्ञानं ज्ञानिजन-दोषभाषण-पैशून्यपरिणाम-विद्यागर्वज्ञान गुर्वादिनिह्नव-पठनादिविघ्नकरण-ज्ञानविनय-प्रकाशन गुणकीर्तिनाद्यनुष्ठानपठन-योग्यापाठनाचार्योपाध्यायसाधु प्रत्यनीकत्वाकालध्ययनकूटपठन-श्रद्धाभावालस्यानादरश्रवण तीर्थोपरोधबहुश्रुत-मात्सर्य-कुज्ञानभावन बहुश्रुतावमानानैकांतमतत्यजनैकांतमतस्थापन-सिद्धांतविरुद्ध स्वेच्छाजल्पनोत्सूत्रभाषण मिथ्योपदेश-शास्त्रविक्रय-विकथाकरण
अशुभ वचन से परस्त्री एवं परधन ग्रहण चिंतन, विषयसुख एवं सौंदर्य स्मरण, कुशास्त्रादि धारण, मिथ्या देव प्रशंसा आदि अशुभ परिणामों से जीव अशुभ प्रकृति और प्रदेश बंध करता है। - ज्ञान और ज्ञानी जनों के विषय में दोष युक्त बोलना, ईर्ष्याभाव, विद्या का गर्व, विद्यागुरु आदि का नाम छिपाना, पढ़ने आदि में विघ्न करना, ज्ञान विषय प्रकाशन में अनादर, गुण कीर्तिनादि कार्य में अनादर, पठन योग्य शास्त्र को नहीं पढ़ाना, आचार्य और उपाध्याय के प्रतिकूल चलना, अकाल अध्ययन, मिथ्या शास्त्र पढ़ना, अश्रद्धा, अभ्यास में आलस्य, अनादर से अर्थ सुनना, तीर्थोपरोध अर्थात् दिव्य ध्वनि के समय स्वयं व्याख्या करने लगना, बहुश्रुतपने का गर्व, खोटे ज्ञान की भावना, बहुश्रुत का अपमान, अनेकांत मत को छोड़कर एकांत मत की स्थापना, अपनी इच्छानुसार सिद्धांत विरुद्ध बोलना, सूत्र विरुद्ध बोलना, मिथ्योपदेश, शास्त्र बेचना, विकथा करना,
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