Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 80
________________ औदारिक या वैक्रियिक शरीर, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, तिर्यंचायु का भी यथायोग्य जघन्य अनुभाग बंध होता है। शुभ परिणामों से उपर्युक्त 43 ध्रुव बंधी अशुभ प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बंध होता है। . सर्वार्थसिद्धि अध्याय 6 सूत्र 3 की टीका में भी कहा गया है - जो योग शुभ परिणामों के निमित्त से होता है वह शुभ योग है और जो योग अशुभ परिणामों के निमित्त से होता है वह अशुभ योग है। शायद कोई यह माने कि शुभ और अशुभ कर्म का कारण होने से शुभ और अशुभ योग होता है सो बात नहीं है, यदि इस प्रकार इनका लक्षण कहा जाता है तो शुभ योग ही नहीं हो सकता, क्योंकि शुभ योग को भी ज्ञानावरणादि कर्मों के बन्ध का कारण माना है। उत्कृष्ट अनुभाग बंध के स्वामी पांच ज्ञानावरण, नव दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, 16 कषाय, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुंवेद ये 5 नोकषाय, हुण्डक संस्थान, अप्रशस्त स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, अयशःकीर्ति, नीचगोत्रं और पांच अंतराय, इन प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभाग बंध का स्वामी पंचेन्द्रिय संज्ञी मिथ्यादृष्टि सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त साकार, जागृत नियम से उत्कृष्ट संक्लेश युक्त और उत्कृष्ट अनुभाग बंध करने वाला अन्यतर 4 गति का जीव है। साता वेदनीय, यशःकीर्ति और उच्च गोत्र के उत्कृष्ट अनुभाग बंध का स्वामी, क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय संयत और अंतिम समय में उत्कृष्ट अनुभाग बंध करने वाले अन्यतर जीव है। स्त्रीवेद, पुंवेद, हास्य, रति, न्यग्रोधपरणिमण्डलादि चार संस्थान, वजनाराचादि चार संहनन का भंग मतिज्ञानावरण के समान है। किंतु विशेषता इतनी है कि यह तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणाम वाले जीव के कहना चाहिए। नरकायु, तीन जाति, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण के उत्कृष्ट अनुभाग का स्वामी सर्वपर्याप्तियों से पर्याप्त हुआ साकार, जागृत, तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणाम वाला और उत्कृष्ट (73) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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