Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ भाग -7 अनिवृत्तिकरण भाग-1 भाग-2 भाग - 3 भाग - 4 भाग -5 26 क्षीण कषाय सयोग केवली अयोग केवली 22 Jain Education International 222 उपशांतकषाय 1 21 20 सूक्ष्मसाम्पराय 17 19 18 1 1 0 94 ( उपर्युक्त64 + अपूर्वकरण के छठे भाग की व्युच्छिन्न 30 प्रकृतियाँ) 98 (उपर्युक्त 94 + हास्य, रति, भय और जुगुप्सा) 99 ( उपर्युक्त 98 + पुरुषवेद) 100 ( उपर्युक्त 99. + संज्वलनक्रोध) 101 ( उपर्युक्त 100 +संज्वलनमान) 102 ( उपर्युक्त 101 + संज्वलनमाया) 103 (उपर्युक्त 102 + संज्वलनलोभ) 119 ( उपर्युक्त 103 +सूक्ष्म्साम्पराय गुणस्थान की व्युच्छिन्न 16 प्रकृ.) 119 ( उपर्युक्त) 119 ( उपर्युक्त ) 120 ( उपर्युक्त + सातावेदनीय) (58) उपघात, परघात, उच्छ्वास, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय) 4 (हास्य, रति, भय, जुगुप्सा) 1 ( पुरुषवेद) 1 ( संज्वलनक्रोध) 1 (संज्वलनमान ) 1 ( संज्वलनमाया ) 1 ( संज्वलनलोभ) 16 (ज्ञानावरण की 5, दर्शनावरण 4, अंतराय 5, यशः कीर्ति और उच्चगोत्र) शून्य (0) शून्य (0) 1 (सातावेदनीय) शून्य (0) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124