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एकेन्द्रियस्य पुनः मिथ्यात्वस्योत्कृष्टास्थितिबंधः एकसागरः। कषायाणां सागरोपम-सप्तभागानां चत्वारोभागाः। ज्ञानावरणदर्शनवरणांतरायसातवेदनीयानामुत्कृष्टास्थितिबंध: सागरसप्तभागानां त्रयोभागाः। नामगोत्रनोकषायाणा सागरसप्तभगानां दौभागौ।
दीन्दियस्य मिथ्यात्वस्योत्कृष्टास्थितिःपंचविंशतिसागर -प्रमाः। त्रीन्द्रियस्य मिथ्यात्वस्योत्कृष्टास्थितिः पंचाशतसागरोपमसंख्यका। चतुरिदियस्य मिथ्यात्वस्य पराः स्थितिबंधः शतसागरप्रमाणः। असंज्ञिपंचेन्द्रियस्य मिथ्यात्वस्योत्कृष्टा स्थितिबंधः सहससागरप्रमाः। द्वीन्द्रियादीनां शेषकर्मणां स्थितिबंधः आगमात् विज्ञेयः।
एकेन्द्रिय के मिथ्यात्व का उत्कृष्ट स्थिति बंध एक सागर है। एकेन्द्रिय के कषायों की उत्कृष्ट स्थिति 4/7 सागर प्रमाण है तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अंतराय इन तीन घातियाकर्मों की 19 प्रकृतियों की तथा असातावेदनीय की एकेन्द्रिय जीव के उत्कृष्ट स्थिति 3/7 सागर बंधती है। नाम, गोत्र एवं नोकषायों की एकेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति 2/7 सागर प्रमाण बंधती है। .
द्वीन्द्रिय के मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति 25 सागर प्रमाण है। त्रीन्द्रिय के मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति 50 सागरोपम है। चतुरिन्द्रिय के मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति 100 सागर प्रमाण है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय के मिथ्यात्व का उत्कृष्ट स्थिति बंध एक हजार सागर प्रमाण है। द्वीन्द्रियादि के शेष कर्मों का स्थिति बंध आगम से जानना चाहिए।
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