Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 63
________________ गुणस्थानों में बन्ध-अबंध एवं बंध व्युच्छित्ति योग्य प्रकृतियों की संदृष्टिगुणस्थान | बन्धरूप अबंध रूप बन्ध से व्युच्छिन्न प्रकृतियाँ | प्रकृतियाँ । प्रकृतियाँ मिथ्यात्व |117 3 (आहारक 116 (मिथ्यात्व, हुण्डकसंस्थान, शरीर, आहारक नपुंसकवेद, असम्प्राप्ताआंगोपांग, सृपाटिकासंहनन, एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय जाति, सूक्ष्म, स्थावर, आतप, अपर्याप्त, साधारण, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी और नरकायु) तीर्थकर) सासादन |101 19 (उपर्युक्त 3|25 (अनंतानुबंधी चतुष्क | + मिथ्यात्वस्त्यानगृद्धि, निद्रा-निद्रा, गुणस्थान की16 प्रचला-प्रचला, दुर्भग, दुःस्वर, व्युच्छिन्न अनादेय, न्यग्रोधपरिमण्डलप्रकृतियाँ) |स्वाति-कुब्जक और वामन संस्थान, वजनाराच-नाराचअर्धनाराच और कीलक संहनन, अप्रशस्तविहायोगति, स्त्रीवेद, नीचगोत्र, तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, तिर्यंचायु और उद्योत) 46 (उपर्युक्त19 शून्य (6) + सासादन गुणस्थान की व्युच्छिन्न 25 प्रकृतियाँ + मनुष्यायु, देवायु) मिश्र 174 (56) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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