Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ - लोभाः पुंवेदः हास्यादिषट्कं देवायुः देवगतिः पंचेन्द्रियजातिः । वैक्रियिकतैजसकार्मणशरीराणि वैक्रियिकां- गोपांगः निर्माणं समचतुरस्रसंस्थानं स्पर्शः रसः गंधः वर्णः देवगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यं अगुरुलघुः उपघातः परघातः उच्छ्वासः प्रशस्तविहायोगतिः । प्रत्येकशरीरः त्रसः सुभगः सुस्वरः शुभः अशुभः बादरः पर्याप्तिः स्थिरः अस्थिरः आदेयः यशः कीर्तिः । अयशः कीर्ति तीर्थकरत्वं उच्चैर्गोत्रं पंचातरायाः एता सप्तषष्टिप्रकृति देशविरतगुणस्थाने संयतासंयतो बध्नाति । अप्रत्याख्यानावरणक्रोधमानमायालोभाः मनुष्यायुः मनुष्यगतिः औदारिकशरीरः औदारिकांगोपांगः वज्रर्षभनाराचसंहननः मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य इमा दशप्रकृतयः पंचमगुणस्थाने अबंधका ज्ञातव्याः । पुंवेद, हास्यादि 6 नोकषाय, देवायु देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियक - तैजस एवं कार्मण शरीर वैक्रियिकांगोपांग, निर्माण, समचतुरस्र संस्थान, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्तविहायोगति, प्रत्येक शरीर, त्रस, सुभग, सुस्वर, शुभ, अशुभ, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, आदेय, यशः कीर्ति, अयशः कीर्ति, तीर्थंकर, उच्चगोत्र, पंचांतराय इन 67 प्रकृतियों का देशविरत गुणस्थान में संयतासंयत बंध करता है । अप्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान- माया - लोभ, मनुष्यायु, मनुष्यगति, औदारिकशरीर, औदारिक अंगोपांग, वज्रवृषभनाराचसंहनन और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी इन दश प्रकृतियों का पंचम गुणस्थान में अबंध जानना चाहिए । Jain Education International (48) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124