Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 53
________________ स्थावरः साधारणः सूक्ष्मः अपर्याप्तिः इमा षोडशप्रकृतयः सासादन गुणस्थाने अबंधका भवति। पंचज्ञानावरणानि। चक्षुरचक्षुरवधिकेवलदर्शनानि निद्रा प्रचला। द्विधा वेदनीयं। अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान-संज्वलन-क्रोध मानमायालोभाः द्वादश कषायाः हास्यादि षट्कं पुंवेदः देवगतिः मनुष्यगतिः पंचेन्द्रियजातिः औदारिकवैक्रियिक-तैजस-कार्मणशरीराणि औदारिकांगोपांगः बैक्रियिकांगोपांगः निर्माणं समचतु -रससंस्थानं वजवृषभनाराचसंहननं स्पर्शः रसः गंधः वर्णः देव -मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यद्वयं अगुरुलघुः उपघातः परघातः उच्छवासः प्रशस्तविहायोगतिः प्रत्येकशरीरः त्रसः सुभगः सुस्वरः शुभः अशुभः वादरः पर्याप्तिः स्थिरः अस्थिरः आदेयः यशःकीर्तिः अयशःकीर्तिः उच्चैर्गोत्रं पंचांतरायाः एताश्चतुःसप्तति स्थावर, साधारण, सूक्ष्म एवं अपर्याप्त इन 16 प्रकृतियों का सासादन गुणस्थान में अबंध होता है। ___ पांच ज्ञानावरण, चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल दर्शनावरण, निद्रा, प्रचला, दो वेदनीय, अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान-संज्वलनक्रोध, मान, माया, लोभ बारह कषायें, हास्यादि छह नो कषाय, पुंवेद, देवगति, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक-वैक्रियिक-तैजसकार्मणशरीर, औदारिकशरीर आंगोपांग, वैक्रियकशरीर आंगोपांग, निर्माण, समचतुरस्रसंस्थान, वजवृषभनाराचसंहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, .प्रशस्त विहायोगति, प्रत्येकशरीर, त्रस, सुभग, . सुस्वर, शुभ, अशुभ, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, आदेय, यशः कीर्ति, अयशः कीर्ति, उच्च गोत्र और 5 अंतराय, इन 74 प्रकृतियों का (46) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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