Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 52
________________ कार्मणः औदारिकांगोपांगः वै क्रियिकांगोपांगः निर्माण समचतुरसन्यग्रोधपरिमंडलस्वातिवामनकुब्जकसंस्थानानि। वजर्षभनाराचः वजनाराचः नाराचः अर्द्धनाराचः कीलिकसंहननं। स्पर्शः रसः गंधः वर्णः। तिर्यग्मनुष्यदेवगतिप्रायोग्यानुपूर्व्याणि। अगुरुलघुः उपघातः परघातः उद्योतः उच्छवासः द्विधाविहायोगतिः प्रत्येकशरीरः त्रसः सुभगः दुर्भगः सुस्वरः दुस्वरः शुमः अशुभः बादरः पर्याप्तिः स्थिरः अस्थिरः आदेयः अनादेयः यशःकीर्ति अयशःकीर्तिः। द्धिधागोत्रं। पंचांतरायाः। एता एकोत्तरशतकर्मप्रकृतिः सासादनगुणस्थाने सासादन सम्यग्दृष्टिर्बध्नाति। मिथ्यात्वं। नपुंसकवेदः। नरकायुः। नरकगतिः। एकद्वित्रिचतुरिंदियजातयः। हुडकसंस्थानं । असंप्राप्तासृपाटिकासंहननं। नरकगतिप्रायोग्यानुपूयं। आतपः शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, औदारिक शरीर आंगोपांग, वैक्रियकशरीर आंगोपांग, निर्माण, समचतुरस्र-न्यग्रोधपरिमण्डल- स्वाति-कुब्जक और वामनसंस्थान, वज्रवृषभनाराच, वज्रनाराच, नाराच, अर्धनाराच एवं कीलक संहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, तिर्यंच, मनुष्य एवं देवगति प्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, प्रशस्ताप्रशस्त विहायोगति, प्रत्येकशरीर, त्रस, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, शुभ, अशुभ, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, आदेय, अनादेय, यशः कीर्ति, अयशःकीर्ति, दो गोत्र, पांच अंतराय ये 101 प्रकृतियां सासादन गुणस्थान में सासादन सम्यग्दृष्टि बंध करता है। मिथ्यात्व, नपुंसकवेद, नरकायु, नरकगति, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय जाति, हुण्डकसंस्थान, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन, नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी, आतप, (45) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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