Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 28
________________ यस्य कर्मविपाकेन द्रव्यादिषु तपोध्यानाध्यनादिषु चारति भवति सा अरतिः। येन पुद्गलविपाकेन देहिनां शोकः प्रादुर्भवति स शोकः। येन पुद्गलस्कंधेरूदयाद् गतौ भयं जायते जीवस्य तेषां भयमिति संज्ञा। येषां कर्मणां वशेन जुगुप्सा घृणा उत्पद्यते तेषां जुगुप्सा इति संज्ञा। येन पुद्गलस्कंधोदयेन पुरुषे आकांक्षा प्रवर्तते स स्त्रीवेदः। येन कर्मणा बनितायामिच्छा जायते स पुंवेदः। येन दुष्कर्मविपाकेनेष्टिकाग्निसादृश्य येन स्त्रीपुरुषयोराकांक्षा उत्पद्यते स नपुंसकवेदः। एवं सर्वे कषायाः। जिन कर्म स्कन्धों के उदय से द्रव्य आदि एवं तप, ध्यान अघ्य्यन आदि में अरति (अरूचि) होती है, वह अरति है। जिन कर्म स्कंधों के उदय से जीव के शोक उत्पन्न होता है, वह शोक है । जिन कर्म स्कंधों के उदय से जीवों के वर्तमान गति में भीति उत्पन्न होती है, वह भय कर्म है । जिस कर्म के उदय से ग्लानि घृणा उत्पन्न होती है, वह जुगुप्सा है। जिन कर्म स्कंधों के उदय से पुरुष में आकांक्षा उत्पन्न होती है, वह स्त्रीवेद है । जिस कर्म के उदय से मनुष्य की स्त्रियों में अभिलाषा उत्पन्न होती है, वह पुरुष वेद है। जिस कर्म के उदय से ईटों के अवा की अग्नि के समान स्त्री और पुरुष इन दोनों में भी आकांक्षा उत्पन्न होती है, वह नपुंसक वेद है। इस प्रकार सभी कषायों का वर्णन पूर्ण हुआ। . (21) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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