Book Title: Karma Vipak
Author(s): Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Nirgrantha Granthamala

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Page 26
________________ यस्योदयेनासुभृतां कज्जलसमानो लोभो जायते सो अप्रत्याख्यानलोभः । प्रत्याख्यानं - संयममावृण्वन्तीति प्रत्याख्यानावरणः क्रोधमानमायालोभाः महाव्रतघातिनः । यस्योदयेनात्मा बालुकारेखासमानं क्रोधं करोति स प्रत्याख्यानक्रोधः । यद्विपाकेनांगी दारुसादृशमभिमानं विधत्ते स प्रत्याख्यानमानः । यद्वशात् जीवो गोमूत्रिकासमानं कौटिल्यं हंतुमसमर्थः सा प्रत्याख्यानमाया । यस्योदयेन देही कर्दमतुल्यं लोभं न त्यजति स प्रत्याख्यानलोभः । संयमेंन सहैकीभूय ये ज्वलति अथवा येषु सत्सु यथाख्यातसंयमो ज्वलंतीति ते संज्वलन क्रोधमानमायालोभाः यथाख्यातचारित्रघातिनः । जिसके उदय से कज्जल के समान लोभ उत्पन्न होता है, वह अप्रत्याख्यान लोभ है । प्रत्याख्यान संयम है । उस संयम को जो आवरण करता है वह प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ है । यह महाव्रत विनाशक है। जिसके उदय से आत्मा वालुका रेखा के समान क्रोध को करता है वह प्रत्याख्यान क्रोध है । जिसके उदय से जीव के दारू के सादृश गर्व रहता है वह प्रत्याख्यान मान है । जिस कषाय के उदय से जीव गोमूत्रिका के समान कुटिलता छोड़ने में असमर्थ है, वह प्रत्याख्यान माया है । जिस कषाय के उदय से जीव कर्दम (कीचड़ ) के समान लोभ छोड़ने में असमर्थ है, वह प्रत्याख्यान लोभ है। संयम के अवस्थान होने में एक होकर जो ज्वलित होते है अर्थात् चमकते है या जिनके सद्भाव में संयम चमकता रहता है, वे संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ हैं । (19) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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