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इसी प्रकार एक की आँखों पर दस वर्ष की आयु में चश्मा लग जाता है जबकि दूसरे भाई की दृष्टि आजीवन सतेज रहती है, उसकी नजर कमजोर ही नहीं होती। इसका कारण दर्शनावरणीय कर्मदलिकों का सघन और विरल होना है।
दुख और सुख का कारण वेदनीय कर्म है और लाभ-अलाभ का कारण अन्तराय कर्म है। एक भाई को लाख प्रयत्न करने और अच्छी से अच्छी औषधि सेवन करने पर भी बीमारी उसका पीछा नहीं छोड़ती, वह जन्म रोगी (Born Sick) होता है। जबकि उसी का दूसरा भाई जानता ही नहीं कि रोग क्या होता है। उस पर न मौसम बदलने का असर होता है और न सर्दी-गर्मी-बरसात का। यह सब साताअसाता वेदनीय का प्रभाव है।
'एक भाई तन-तोड़ परिश्रम करता है, किन्तु लाभ नहीं होता, जबकि दूसरा भाई अल्प श्रम से करोड़ों की दौलत का स्वामी बन जाता है। इसका कारण अन्तराय कर्म
___ आज पर्यावरणवादियों और वंशानुक्रमवादियों के सम्मुख सबसे प्रधान समस्या शरीर रचना सम्बन्धी है। दो युगल भाइयों में एक ठिंगना, दूसरा लम्बा, एक दुबला, दूसरा हृष्ट-पुष्ट क्यों है? आदि समस्याओं का समुचित समाधान वे नहीं दे पाते।
जैन कर्म विज्ञान में वर्णित नामकर्म शरीर रचना से सम्बन्धित है। संहनन, संस्थान आदि के द्वारा शरीर-निर्माण प्रक्रिया बताई गई है। जिस भाई ने वामन संस्थान का बन्ध किया है, वह तो ठिंगना ही रहेगा। इसी प्रकार शरीर-सम्बन्धी अन्य जटिलताओं का कारण भी नामकर्म ही है।
इस सम्बन्ध में पर्यावरण और वंशानुक्रम (जींस, गुणसूत्र आदि) को एक कारण मान भी लिया जाये तो भी वह निश्चित कारण (deternining factor) नहीं बन सकता। शरीर सम्बन्धी समस्त जटिलताओं और विभिन्नताओं का निश्चित और वास्तविक कारण नामकर्म का बंध और उसका फलभोग ही है।
इसी प्रकार जितनी भी और जैसी भी शंकाएँ जिज्ञासाएँ हैं उन सभी का समुचित तर्कपुरस्सर समाधान कर्मविज्ञान में उपलब्ध है।
उपर्युक्त उदाहरण युगल भाइयों से सम्बन्धित है। यदि इसका विस्तार किया जाये तो संसार की सभी जटिलताएँ समाहित हो जायेंगी। ___ अन्तकृद्दशा सूत्र में वर्णन आता है। मुनि गजसुकुमाल के जीव ने ९९ लाख जन्म पूर्व सोमिल के जीव के सिर पर गर्म रोटी बाँधी थी। उसके फलस्वरूप उनके सिर पर सोमिलं ने अंगारे रखे। इससे यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि प्राणी को इसी जन्म अथवा दो-चार पिछले जन्मों में बाँधे गये कर्मों का ही फल नहीं भोगना पड़ता अपितु करोड़ों पूर्व जन्मों में बाँधे गये कर्मों का फल भी भोगना पड़ता है।
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