Book Title: Kalpasutra
Author(s): Devendramuni
Publisher: Amar Jain Agam Shodh Samsthan

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Page 14
________________ प्रस्तावना नन्दीसूत्र मे आगम साहित्य की सविस्तृत सूची प्राप्त होती है। आगम की जितनी भी शाखाएं है, उनका निरूपण उसमें किया गया है। प्रथम आगम को अंग प्रविष्ट और अग बाह्य में विभक्त कर फिर अंग बाह्य और आवश्यक व्यतिरेक इन दो भागो मे विभक्त किया है, उसके पश्चात् आवश्यक व्यतिरेक के भी दो भेद किये हैं, कालिक और उत्कालिक कालिक श्रुत की सूचि मे एक कल्प का नाम आया है जो वर्तमान मे बृहत्कल के नाम से जाना पहचाना जाता है, और उत्कालिक श्रुत की सूची मे 'चुल्ल कल्पश्रुत' और 'महाकल्पश्त' इन दो कल्पसूत्रो के नाम आये है । पं० गणि श्री कल्याणविजय जी का मानना है कि महाकल्प को विच्छेद हुए हजार वर्ष से भी अधिक समय हो गया है और 'चुल्लकल्पत को आज पर्युषणा कल्पसूत्र कहते है।" परन्तु लेख मे मुनि श्री कल्याणविजय जी ने कोई प्राचीन ग्रन्थ का आधार प्रस्तुत नहीं किया। आगम प्रभावक प० मुनि श्री पुण्यविजय जी का अभिमत है कि 'महाकल्प' और चुल्लकल्प ये आगम नन्दीसूकार देवगणी क्षमाश्रमण के समय में भी नहीं थे। उन्होने उस समय कुछ यथाश्रुत एवं कुछ यथादृष्ट नामो का संग्रह मात्र किया है । अतः 'चुल्लकल्प श्रुत' को पर्युपणा कल्पसूत्र मानने का मुनि श्री कल्याणविजय जी का अभिमत युक्तियुक्त और आगम सम्मत नहीं है।" स्थानाङ्ग सूत्र मे दशाश्रुत स्कध का नाम 'आयार दसा (आचार दशा) दिया है। उसके दस अध्ययन है, उसमे आठवा अध्ययन पर्युषणा कल्प है। जो वर्तमान मे पर्युपणा कल्पसूत्र है, वह दशाबुत स्कंध का ही आठवा अध्ययन है । दशाभूतस्कंध की प्राचीनतम प्रतिया (१४वीं शताब्दी से पूर्व की ) जो पुण्यविजय जी महाराज के सौजन्य से मुझे देखने को मिली है, उसमे आठवे अध्ययन मे पूर्ण कल्पसूत्र आया है। जो यह स्पष्ट प्रमाणित करता है कि कल्पसूत्र कोई स्वतंत्र एवं मनगढन्त रचना नहीं है, अपितु दशाथ तस्कंध का ही आठवा अध्ययन है । ♡ दूसरी बात दशा तस्कष पर जो द्वितीय भद्रबाहु की नियुक्ति है, जिनका समय विक्रम की छठी शताब्दी है, उसमे और उस नियुक्ति के आधार से निर्मित पूणि मे, दशा तस्कंध के आठवें अध्ययन में जो वर्तमान में पर्युषणा कल्पसूत्र प्रचलित है, उनके पदो की व्याख्या मिलती है। मुनि श्री पुण्यविजय जी का अभिमत है कि दशा तस्कर की भूमि लगभग सोलह सौ वर्ष पुरानी है। १. प्रबंध पारिजात मुनि कल्याणविजय जी पृ० १४३ २. लेखक के नाम लिखे पत्र का मक्षिप्त सागण पत्र सं० २०२४ वैशाख शुदि ५ शुक्रवार अहमदाबाद से । बारस ३. आचारवमाणं दस नयणा पण्णता त जहा-बीसं असमाहिठाणा, एगवीस सबला, तेतीस आमायणाता अट्ठबिहा गणितपया, दस चित्तसमाहिठाणा, एगारस उवासगपडिमातो, भिक्खुडिमातो पोसवण कप्पो, तीसं मोहणिज्जठाणा, आजाइट्ठाणं । ४. कल्पसूत्र, प्रस्तावना पृ० ८ स्थानाङ्ग १० स्थान १३

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