Book Title: Jivvicharadi Prakaran Chatushtyam
Author(s): Hemprabhvijay
Publisher: Divyadarshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ असुराण अहिय अयरं देसूणदुपल्लयं नव निकाए । बारसवासुणपणदिण छमास उक्किट्ठ विगलाऊ ॥२४॥ पुढवाइ दसपयाणं अंतमुहुत्तं जहन्नआउठिई । दससहसवरिसठिइआ भवणाहिवनिरयवंतरिया ॥२५॥ वेमाणिअजोइसिया पल्लतयटुंसआउआ हुंति । . पृथिव्यप्वायुवनस्पतीनां चतुर्णां दण्डकानामनुक्रमेण बावीसेत्यादि स्थितिरायुर्ज्ञातव्यं, अयम्भावः-पृथिव्याः द्वाविंशतिजीवविचारादि-13 वर्षसहस्राण्युत्कृष्टमायुः, तथा सग त्ति-अपां सप्तसहस्रवर्षाणि, तथाऽग्नेरने पृथक् वक्ष्यमाणत्वात्, वायोः त्रीणि वर्षसहस्राणि, प्रकरण- तथा वनस्पतेः दशसहस्रवर्षाण्यायुः ॥२२॥ चतुष्टयम् _ 'तिदिणग्गि त्ति' अग्नेः त्रीण्यहोरात्राणि, तथा 'नरतिरि' इति नराणां तिरश्चां च त्रीणि पल्योपमानि देवकुरूत्तरकुरु-1B युगलिकापेक्षया तथा 'सुरनिरयसागर तित्तिसा' त्ति सुराणां नारकाणां चायुरुत्कृष्टं त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणीदं च सर्वार्थविमान 606060-60-6006060 6006206a 6006060600606A6A6d6i0nha ॥१०७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184