Book Title: Jivvicharadi Prakaran Chatushtyam
Author(s): Hemprabhvijay
Publisher: Divyadarshan Trust
View full book text
________________
जीवविचारादिप्रकरणचतुष्टयम्
|च १९०, गुणकारः ततो गुणिते लब्धं योजनानि लक्षं १००००० एतत्पुनर्जंबूद्वीपमानमिति ||३|| पुनर्मुग्धावबोधनार्थं वर्षाणि वर्षधरांश्चाश्रित्य तृतीयं प्रकारमाह -
अहवेग खंडे भरहे, दो हिमवंते य हेमवइ चउरो । अट्ठ महाहिमवंते, सोलस खंडाई हरिवासे ॥४॥
बत्तीसं पुण निसढे, मिलिया तेसट्ठि बीयपासेवि । चउसट्ठी उ विदेहे, तिरासिपिंडे उ नउयसयं ॥ ५ ॥
अहवेत्यादि-अथवेति विकल्पांतरे भरतनाम्नि क्षेत्रे एकमेकसंख्याकं खंडं भवतीत्यादि शेषोऽध्याहार्यः, खंडप्रमाणत्वात्तस्य । | यदुक्तं- "पंचसये छव्वीसे छच्च कलावित्थडं भरहवासं” इति । तथा "दो हिमवंति त्ति" हेमवति वर्षधरे द्वे द्विसंख्ये खंडे भवतः । यतो भरतक्षेत्रात् पराणि वर्षधरवर्षाणि क्रमेण द्विगुणद्विगुणविस्ताराणि । तदुक्तं "भरहेरवयप्पभिई, दुगुणा दुगुणा य होइ विक्खंभे । वासा वासहराणं, जावय वासं विदेहति ॥ १॥ तथा "हेमवइ चउरो" इति हैमवते द्वितीये क्षेत्रे चत्वारि
जंबूद्वीप संग्रहणी
॥१२४॥

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184