Book Title: Jivvicharadi Prakaran Chatushtyam
Author(s): Hemprabhvijay
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 118
________________ 60-60-6006006d6d6d6d6d6d उवओगा मणुएसु बारस नव निरयतिरिअदेवेसु । विगलदुगे पण छक्कं चउरिंदिसु थावरे तिअगं ॥२०॥ ___ मनुष्येषु द्वादशापि उपयोगाः, तथा 'नवनिरयतिरिअदेवेसु' नारकतिर्यग्देवेषु नव उपयोगा स्युः, मनःपर्यायज्ञानकेवलदर्शनकेवलज्ञानरूपास्त्रयो न भवन्ति, तथा 'विगलदुगे पणछक्कं कोऽर्थः? द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रियविकले पञ्च उपयोगा, पञ्च के इत्याह-मतिज्ञान १ श्रुतज्ञान, २ मत्यज्ञान ३ श्रुताज्ञान ४ अक्षुर्दर्शन ५ रूपाः तथा चतुरिन्द्रियेषु 'छक्कं' षट् उपयोगा भवन्ति पञ्च पूर्वोक्त एव षष्ठः चक्षुर्दर्शनरूपः तथा स्थावरे पृथिव्यादिपञ्चके मत्यज्ञान १ श्रुताज्ञान २ अचक्षुर्दर्शन ३ रूपास्त्रय | उपयोगाः इति पञ्चदशं द्वारं १५ ॥२०॥ अथ षोडशमुपपातद्वारमाह - संखमसंखा समए गब्भयतिरिविगलनारयसुरा य । मणुआ नियमा संखा वणणंता थावर असंखा ॥२१॥ असन्निनर असंखा । గసొగలాయరుగసాగపోగసౌగసాగలాగులో जीवविचारादिप्रकरणचतुष्टयम् ॥१०५॥

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