Book Title: Jivvicharadi Prakaran Chatushtyam
Author(s): Hemprabhvijay
Publisher: Divyadarshan Trust
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दंडक
गर्भजतिर्यश्चःविकला-नारकाः-सुराश्चैते अष्टादश दण्डकाः एकस्मिन् समये संख्याता असंख्याताश्चोत्पद्यमाना लभन्ते, तथा मनुष्या नियमेन संख्याता एवोत्पद्यन्ते तेषां सत्तारूपेणापि संख्यातत्वात्, वणत्ति-वनस्पतयः अनन्ता उत्पद्यन्ते, तथा स्थावराः पृथिव्यादिपञ्चकरूपाः असंख्याता उत्पद्यन्ते ॥२१॥ | असंज्ञिनो मनुष्याः प्रज्ञापलायां ये उच्चारादिचतुर्दशस्थानेषु कथितास्ते एकस्मिन् समये असंख्याता उत्पद्यन्ते इदं प्रसंगाल्लिखितमिति षोडशद्वारम् १६ । अथ सप्तदशं च्यवनरूपं द्वारमाह -
जह उववाउ तहेव चवणेवि । __यथा चतुर्विंशतिदण्डकेषु उपपातद्वारं तथैव च्यवनद्वारमपि ज्ञेयं, ये संख्याताः असंख्याता अनंताश्चोत्पद्यमाना उक्तास्ते जीवविचारादि-शच्यवनेऽपि तथैव ज्ञातव्याः इति सप्तदशद्वारम् ॥७॥ अष्टादशं स्थितिद्वारमाह - प्रकरणचतुष्टयम्
बावीससगतिदसवाससहस्स उक्किट्ठ पुढवाई ॥२२॥ तिदिणग्गितिपल्ला ऊ नरतिरिसुरनिरयसागरतित्तिसा । वंतरपल्लं जोइस वरिसलक्खाहियं पलियं ॥२३॥
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२॥१०६॥

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