Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र
रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर व नीचे के एक एक हजार योजन छोड़ कर शेष एक लाख अठहत्तर हजार योजन के देशभाग में असुरकुमार देवों के चौसठ लाख भवनावास हैं। वे भवन बाहर से गोल, अन्दर से चौरस, नीचे से कमल की कर्णिका के आकार के हैं उन भवनावासों में बहुत से असुरकुमार देव दिव्यभोगों को भोगते हुए विचरते हैं।
____ असुरकुमार देव दो प्रकार के होते हैं - १. दक्षिण दिशा वाले असुरकुमार देव और २. उत्तरदिशा वाले असुरकुमार देव। दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों के चौतीस लाख भवनावास हैं। दक्षिण दिशा के देव देवियों पर आधिपत्य करता हुआ असुरकुमारेन्द्र असुरकुमार राजा चमर वहां निवास करता है। उत्तरदिशा के असुरकुमारों के तीस लाख भवनावास हैं। उत्तरदिशा के असुरकुमार देव देवियों का आधिपत्य करता हुआ वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलीन्द्र वहां निवास करता है। ...
चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररणो कइ परिसाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! तओ परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - समिया चंडा जाया, अभिंतरिया समिया मज्झे चंडा बाहिं च जाया।
चमरस्स णं भंते! असुरिदस्स असुररण्णो अब्भिंतरपरिसाए कई देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? मज्झिमपरिसाए कइ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? बाहिरियाए परिसाए कइ देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो अन्भितरपरिसाए चउवीसं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, मझिमियाए परिसाए अट्ठावीसं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ, बाहिरियाए परिसाए बत्तीसं देवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ।
चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररण्णो अब्भिंतरियाए परिसाए कइ देविसया पण्णत्ता? मज्झिमियाए परिसाए कइ देविसया पण्णत्ता? बाहिरियाए परिसाए कइ देविसया पण्णत्ता?
गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो अब्भिंतरियाए परिसाए अद्धट्ठा देविसया पण्णत्ता मज्झिमियाए परिसाए तिणि देविसया बाहिरियाए अड्डाइज्जा देविसया पण्णत्तार ___ कठिन शब्दार्थ - परिसाओ - परिषद्, अब्भिंतरिया - आभ्यन्तर, मज्झिमिया - मध्यम, बाहिरियाए - बाह्य।
भावार्थ - हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएं कही गई हैं ?
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