Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 12
________________ जीव-विज्ञान सम्यकचारित्र भी औपशमिक होता है। आगे और भी सम्यग्दर्शन होगा वह अन्य प्रकार का होगा। शंका-तो क्या सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्र केवल औपशमिक ही होता है? समाधान नहीं, ऐसा नहीं है। सम्यग्दर्शन और भी कई प्रकार का हो सकता है लेकिन यहाँ पर जो लिखा गया है वह औपशमिक सम्यग्दर्शन के भेद बताने के लिए लिखा गया है। इसलिए प्रत्येक सूत्र का हमें सही रूप में अर्थ लगाना चाहिए। शंका-जिस जीव के पास औपशमिक भाव होगा क्या उसके पास क्षायिक भाव भी होगा कि नहीं? समाधान-सम्यग्दर्शन और चारित्र-ये दो ही प्रकार के औपशमिक भाव हैं और जिसके पास में इन दोनों सम्बन्धी औपशमिक भाव होगा उसके पास इन दोनों सम्बन्धी क्षायिक भाव नहीं होगा। जहाँ औपशमिक सम्यग्दर्शन होगा वहाँ क्षायिक सम्यग्दर्शन नहीं होगा। जहाँ औपशमिक चारित्र होगा वहाँ क्षायिक चारित्र नहीं होगा। इन दोनों भावों में से कोई एक ही भाव रहेगा। इसलिए औपशमिक सम्यग्दृष्टि की संख्या अलग होती है और क्षायिक सम्यग्दृष्टि की संख्या अलग होती है। इसी तरह से चारित्र का भाव होता है। औपशमिक चारित्र वाले मुनि महाराज जब श्रेणियों पर चढ़ते हैं तो उस समय औपशमिक चारित्र का भाव होगा। यह ध्यान तो उपशम श्रेणी में होगा। आपने सुना होगा ध्यान में दो श्रेणी होती हैं। एक उपशम श्रेणी होती है और दूसरी क्षपक श्रेणी होती हैं। उपशम श्रेणी में उस समय जो चारित्र होगा उसको यहाँ औपशमिक-चारित्र कहा गया है। और जो क्षपक-श्रेणी में चारित्र होगा उसे क्षायिक-चारित्र कहा गया है। क्षायिक-भाव के नौ भेदज्ञान-दर्शन-दान-लाभ-भोगोपभोग-वीर्याणि च।।4।। अर्थ-क्षायिक-ज्ञान (केवलज्ञान), क्षायिक-दर्शन (केवलदर्शन) क्षायिकदान, क्षायिकलाभ, क्षायिकभोग, क्षायिकउपभोग, क्षायिकवीर्य और च शब्द से क्षायिक-सम्यक्त्व और क्षायिक-चारित्र ये नौ क्षायिक-भाव हैं। क्षायिक-भाव के नौ भेद बताए जा रहे हैं। इन्हें क्रमशः लगाना है-पहले ज्ञान अर्थात् क्षायिकज्ञान, क्षायिकदर्शन, क्षायिकदान, क्षायिकलाभ, क्षायिकभोग, क्षायिकउपभोग और क्षायिक वीर्य इस तरह से ये सात भाव हुए और सूत्र में जो च शब्द आया है यह एक समुच्चय का सूचक होता है। इससे सम्यक्त्व और चारित्र को क्षायिक के साथ जोड़ना है। इस तरह क्षायिक-सम्यक्त्व और क्षायिक-चारित्र इन्हें मिला लेने से क्षायिक के नौ भेद हो जाते हैं। अर्थात् सम्यक्त्व तो औपशमिक भी है और क्षायिक भी है, इसी तरह चारित्र औपशमिक भी है और क्षायिक भी है। इनको हम अपने दिमाग में इस तरह से रख सकते हैं। ये जितने भी भाव दिये गये हैं अर्थात् ज्ञान, दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य ये सारे के सारे भाव यदि होंगे तो केवली भगवान में, अरिहन्त भगवान में और 12

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