Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 53
________________ जीव-विज्ञान अब शेष इन्द्रियों के स्वामी कौन होते हैं? तो क्रम से एक-एक उदाहरण देकर बताया गया है। क्रम से एक-एक उदाहरण लगाते जाना और एक-एक इन्द्रिय को बढ़ाते जाना। कृमि (कीड़ा) यह दो इन्द्रिय का उदाहरण हो गया, पिपीलिका अर्थात् चींटी यह तीन इन्द्रिय का उदाहरण हो गया, भ्रमर (भौंरा) यह चार इन्द्रिय का उदाहरण हो गया और मनुष्य आदि यह पाँच इन्द्रिय का उदाहरण हो गया। आदि शब्द से प्रत्येक इन्द्रियों के जो उदाहरण दिये हैं उनमें और भी जीव हैं। कृमि आदि, पिपीलिका आदि, भ्रमर आदि, मनुष्य आदि ऐसे सभी में आदि लगाना और इन सबके साथ एक-एक इन्द्रिय की वृद्धि करते चले जाना। दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय मनुष्य आदि पाँच इन्द्रिय हैं। इस तरह से प्रत्येक इन्द्रिय के यहाँ पर स्वामी बताए गए हैं। अब आगे मन का विषय शुरू होगा। गति से गत्यान्तर जाने की प्रक्रिया भी शुरू होगी। संज्ञी जीव का स्वरूपसंज्ञिनः समनस्काः ।।24|| संज्ञा शब्द के अर्थ अर्थ-मन सहित जीवों को संज्ञी कहते हैं। आहारादि। मनसहित आचार्य इस सूत्र में बताते हैं मन से सहित जीवों को संज्ञी जीव कहते हैं। संज्ञी जीव किसे कहते हैं? जो मन से सहित होते हैं। जो मन से रहित होते हैं उन्हें असंज्ञी जीव कहते हैं। नाम ज्ञान ((यह अर्थ यहाँ सत्र में इच्छा विवक्षित है) की यहाँ से यह अध्याय बदल रहा है। अब इन जीवों की परिणति के बारे में बताया जाएगा। जब इन जीवों का मरण हो जाता है और मरकर वह दूसरे शरीर को ग्रहण करता है। तो इनके बीच में क्या होता है? इस बात को दुनिया का कोई विज्ञान नहीं जानता। यह वीतराग विज्ञान हमें बताता है। आगे के सूत्र में आचार्य बताते हुए कहते हैं-विग्रहगति में गमन मन बिना कैसे? विग्रहगतौ कर्मयोगः ।। 25 ।। विग्रहगति सीधी- ऋजगति बिना मोड़ाईषुगति अविग्रहा (मोडे सहित) पाणिमुक्ता (1 मोड़ा) लांगलिका (2 मोड़ा) गौमूत्रिका (3 मोड़ा) गति / (मोडे सहित)

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