Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 83
________________ जीव-विज्ञान कर सकते हैं। देवों में सोलहवें स्वर्ग से ऊपर के देव मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और सम्यग्दृष्टि भी होते हैं। लेकिन वे नियम से शुक्ल लेश्या वाले होते हैं। लेश्याओं के परिणाम या कषायों की मंदता इतनी अधिक हो जाती है कि वहाँ उनको केवल शुक्ल लेश्या होती है। इसके कारण उन देवों में किसी भी रूप में देवियों को देखने के भी परिणाम नहीं होते हैं। उनसे रमण करने की इच्छा नहीं होती है। इसलिए सोलहवें स्वर्ग से ऊपर के देव बिल्कुल वीतरागी मुनि महाराज की तरह होते हैं। ये वेदों का परिणाम जो भावों के रूप में है उसको हम लेश्या परिणामों से सम्भाल सकते हैं। जो आज की एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है। अगर हमारी लेश्याएं शुभ हो जाए तो हमारे अंदर वेद का जो आक्रामक रूप दिखाई देता है वह दिखाई नहीं देगा। ये लेश्या-परिणाम हमारी कषायों की मंदता पर निर्भर करते हैं। आपकी कषायें जैसे-जैसे मंद होगी आपकी लेश्याएं शुभ होती चली जाएगी। शुक्ल लेश्या वाला एकदम शान्त रहता हैं । आप इस चीज का प्रैक्टीकल भी कर सकते हैं। लेश्याओं को बदलना, भावों की परिणति को बदलना आपके लिए सम्भव हो सकता है। यह भी जैन-दर्शन का बहुत बड़ा लेश्या-विज्ञान है। छ: प्रकार के रंग हैं और उन छ: प्रकार के रंगों के आधार पर ही अन्तरंग में लेश्याओं का परिणाम बताया गया है। जब शुभ लेश्या होगी तो पीत, पदम और शुक्ल ये रंग होंगे अर्थात् भावों की स्वच्छता, निर्मलता बढ़ती चली जाएगी। शुक्ल लेश्या के परिणाम कषायों की मन्दता से कोई भी जीव कर सकता है। कृष्ण लेश्या वाले जीव भी शुक्ल लेश्या में आ सकते हैं। काले से सफेद परिणाम बनना इसी को कहते हैं। आप देखोगे कई अजैन लोग ऐसे होते हैं जिनके परिणाम बहुत शान्त, उदासीन, निर्मल और पक्षपात से रहित होते हैं। ऐसे-ऐसे लोग होते हैं जिन्हें धर्म का भी कोई पक्षपात नहीं होता है। उनके अंदर सभी प्राणियों के प्रति समता का भाव रहेगा। ऐसे परिणामों का अर्थ है-शुक्ल लेश्या के परिणामों के निकट आ जाना। यह परिणाम मिथ्यादृष्टि-जीव भी अपनी कषायों को मंद करके अपने अंदर ला सकता है। इन शान्त परिणतियों के परिणाम ये होते हैं कि उसके अंदर किसी भी प्रकार का उद्वेग नहीं होगा और आप जैन होकर भी यदि अपने परिणामों को नहीं संभालेंगे तो आप जैन होकर भी उद्वेग भावों में बने रहेंगे। 'ये मिथ्यादृष्टि है, ये सम्यग्दृष्टि है, केवल इसी में लड़ते रहेंगे। आपस में लड़ते रहेंगे, एक दूसरे के लिए कषाय पैदा करते रहेंगे। अपनी भी लेश्या खराब करेंगे और दूसरे की भी लेश्या खराब करेंगे। उससे जो भी हानि होगी उसका परिणाम स्वयं को भी भोगना पड़ेगा और दूसरे को भी भोगना पड़ेगा। इन लेश्याओं की शुभता से भी हमारे आभामण्डल में बहुत अधिक शुभता आ जाती है। यही शुभता बढ़ते-बढ़ते कषायों की मंदता होने पर मिथ्यात्व परिणामों की भी मंदता होती है और वह सम्यग्दर्शन की उपलब्धि कराती है। इसलिए सम्यग्दृष्टि जीवों को इन कषायों की मंदता पर ध्यान देना चाहिए। आज कई लोगों की यह समस्या है कि हम अपने अंदर इन Sexual परिणामों को कैसे रोके?जो Opposite Sex के प्रति उत्पन्न होते रहते हैं। जो इनको नहीं रोक पाते है वे इनसे परेशान 83

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